श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी129. विष्णुप्रिया जी को संन्यासी स्वामी के दर्शन
प्रभु के छोटे-बड़े सभी भक्त तथा भक्तों की स्त्रियां-बच्चे यहाँ कुलिया में आकर उन के दर्शन कर गये थे। शचीमाता शान्तिपुर में ही मिल आयी थीं। कोई भी भक्त प्रभुदर्शनों से वंचित नहीं रहा। महाप्रभु पांच-सात दिन कुलिया में ठहरे। इतने दिनों तक कुलिया में मेला-सा ही लगा रहा। इतने पर भी एकान्त में प्रभु का चिन्तन करती हुई विष्णुप्रिया जी अपने घर के भीतर ही बैठी रहीं। वे एक सती-साध्वी कुलवधू की भाँति घर से बाहर नहीं निकलीं, मानों उन्हीं को अप ने दर्शनों से कृतार्थ कर ने के निमित्त प्रभु ने नवद्वीप जा ने की इच्छा प्रकट की। भक्तों के आनन्द का ठिकाना नहीं रहा। उसी समय नौ का मंगायी गयी और प्रभु अपने दस-पांच अन्तरंग भक्तों के साथ गंगापार कर के नवद्वीप घाट पर पहुँचे। घाट की सीढियों पर चढ़कर प्रभु शुक्लाम्बर ब्रह्मचारी की कुटिया पर पहुँचे। ब्रह्मचारी जी अप ने भाग्य की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए प्रभु के पैरों में लोट-पोट हो ने लगे। क्षणभर में ही यह समाचार सम्पूर्ण नगर में फैल गया। लोग चारों ओर से आ-आकर प्रभु के दर्शनों से अपने को कृतार्थ मान ने लगे। समाचार पाते ही शचीमाता भी जै से बैठी थीं, वै से ही दौड़ी आयीं। प्रभु ने माता की चरण-वन्दना की। माता अप ने अश्रुओं से प्रभु के वस्त्रों को भिगो ने लगी। प्रभु चुपचाप खड़े कुछ सोच रहे थे, किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई। तब प्रभु पैरों में खड़ाऊं पहने धीरे-धीरे शचीमाता के साथ घर की ओर चल ने लगे। एक-एक करके उन्हें सभी बातें स्मरण हो ने लगीं। पांच-छः वर्ष पूर्व जिस घाट पर वे स्नान करते थे वह घाट इतने आदमियों के रहने पर भी सूना-सा प्रतीत हुआ। सभी पूर्व- परिचित वृक्ष हिल-हिलकर मानो प्रभु का स्वागत कर रहे हों। वे ही भवन, वे ही अट्टालिकाएं, वे ही प्राचीन पथ, वे ही देवस्थान प्रभु की स्मृति को फिर से नूतन बना ने लगे। |