श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी114. गौर भक्तों का पुरी में अपूर्व सम्मिलन
इधर भगवान की स्नान-यात्रा का समय समीप आ पहुँचा। महाप्रभु बड़ी ही उत्सुकता से स्नान यात्रा की प्रतीक्षा करने लगे। स्नान यात्रा के दिन महाप्रभु अपने भक्तों सहित मन्दिर में दर्शन करने के लिये गये। उस दिन के उनके आनन्द का वर्णन कौन कर सकता है। महाप्रभु प्रेम में बेसुध होकर उन्मत्त पुरुष की भाँति मन्दिर में ही कीर्तन करने लगे। लोगों की अपार भीड़ महाप्रभु के चारों ओर एकत्रित हो गयी। जैसे तैसे भक्त उन्हें स्थान पर लाये। स्नान यात्रा के अनन्तर 14 दिन तक भगवान अन्त:पुर में रहते हैं, इसलिये 14 दिनों तक मन्दिर के फाटक एकदम बंद रहते हैं, किसी को भी भगवान के दर्शन नहीं हो सकते। महाप्रभु के लिये यह बात असह्य थी, वे भगवान के दर्शन के लोभ से ही तो पुरी में निवास करते हैं, जब भगवान के दर्शन ही न होंगे, तो वे फिर पुरी में किसके आश्रय से ठहर सकते हैं। फाटक बन्द होते ही महाप्रभु की वियोग-वेदना बढ़ने लगी और वह इतनी बढ़ी कि फिर उनके लिये पुरी में रहना असह्य हो गया, वे गोपियों की भाँति विरह के भावावेश में पुरी को छोड़कर अकेले ही अलालनाथ चले गये। वे अपने प्यारे के दर्शन न पाने से इतने दु:खी हुए कि उन्होंने भक्तों की अनुनय विनय की कुछ भी परवाह न की। प्रभु के पुरी परित्याग के कारण सभी भक्तों को अपार दु:ख हुआ। महाराज प्रतापरुद्र जी ने भी प्रभु के अलालनाथ चले जाने का समाचार सुना। उन्होंने भट्टाचार्य सार्वभौम से प्रभु को लौटा लाने के लिये भी कहा। उसी समय गौड़ीय भक्तों के आगमन का समाचार सुना। इस संवाद को सुनकर सभी को बड़ी भारी प्रसन्नता हुई। सार्वभौम भट्टाचार्य नित्यानन्द जी आदि भक्तों को साथ लेकर प्रभु को लौटा लाने के लिये अलालनाथ गये। वहाँ जाकर इन लोगों ने प्रभु से प्रार्थना की कि पुरी के भक्त तो आपके दर्शन के लिये व्याकुल हैं ही, गौड़-देश से भी बहुत से भक्त केवल प्रभु के दर्शन के निमित्त आये हैं। यदि वे प्रभु के पुरी में दर्शन न पावेंगे, तो उन्हें अपार दु:ख होगा; इसलिये भक्तों के ऊपर कृपा करके आप पुरी लौट चलें। प्रभु ने भक्तों की विनय को स्वीकार कर लिया। गौड़ीय भक्तों के आगमन संवाद से उन्हें अत्यधिक प्रसन्नता हुई और वे उसी समय भक्तों के साथ पुरी लौट आये। ‘महाप्रभु पुरी लौट आये हैं’ इस संवाद को सुनाने के निमित्त सार्वभौम भट्टाचार्य महाराज प्रतापरुद्रदेव जी के समीप गये। उसी समय पुरुषोत्तमचार्य जी महाराज के समीप पहुँच गये। आचार्य ने कहा- ‘महाराज ! गौड़ देश के लगभग 200 गौर-भक्त पुरी आये हुए हैं। उनके ठहरने की और महाप्रसाद की व्यवस्था करनी चाहिये क्योंकि वे सब के सब महाप्रभु के चरणों में अत्यधिक अनुराग रखते हैं और इसीलिये वे आये हैं।’ |