श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी92. श्रीसाक्षिगोपाल
वृद्ध ब्राह्मण ने कहा- ‘तुम तो बदला नहीं चाहते, किन्तु मेरा भी तो कुछ कर्तव्य है, जब तक मैं तुम्हारे इस महान उपकार का कुछ थोड़ा-बहुत प्रत्युपकार न कर सकूँगा, तब तक मुझे शान्ति न होगी। मेरी इच्छा है कि मैं अपनी पुत्री का विवाह तुम्हारे साथ कर दूँ?’ आश्चर्य प्रकट करते हुए उस युवक ने कहा- ‘यह आप कैसी बातें कर रहे हैं, कहाँ आप इतने भारी कुलीन, धनी-मानी, बड़े परिवार वाले गृहस्थ, कहाँ मैं माता-पिताहीन, अकुलीन,अनाथ ब्राह्मणकुमार ! मेरा आपका सम्बन्ध कैसा- सम्बन्ध तो सदा समान शील-गुणवाले पुरुषों में होता है। उस युवक ने कहा- ‘आप तो खैर राजी हो जायँगे, किन्तु आपकी स्त्री, आपका पुत्र तथा जाति-परिवार वाले इस सम्बन्ध को कब स्वीकार करने लगे? वे तो इस बात के सुनते ही आग-बबूला हो जायँगे?’ वृद्ध ब्राह्मण ने दृढ़ता के साथ कहा- ‘हो जाने दो सबको आग-बबूला। किसी का इसमें क्या साझा है ? लड़की मेरी है, मैं जिसे चाहूँगा दूँगा। कोई इसमें कह क्या सकता है? तुम स्वीकार कर लो।’ वृद्ध ब्राह्मण ने जोश में आकर कहा- ‘मैं गोपाल भगवान को साक्षी करके कहता हूँ कि मैं तुम्हारे साथ अपनी पुत्री का विवाह अवश्य करूँगा। बस, अब तो विश्वास करोगे?’ कुछ धीरे से ब्राह्मण कुमार ने कहा- ‘अच्छी बात है’, वहाँ चलने से सब पता चल जायगा!' इस प्रकार गोपाल के सामने पुत्री देने की प्रतिज्ञा करके वह वृद्ध ब्राह्मण थोड़े दिनों के बाद उस युवक के साथ लौटकर विद्यानगर में आ गया। |