श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी83. श्रीकृष्ण-चैतन्य
नित्यानन्द जी ने कहा- ‘प्रभो! आप पहले अपने पूज्य गुरुदेव के चरणों में प्रणाम तो कर आइये। फिर वे जिस प्रकार की आज्ञा करें वही कीजियेगा। बिना गुरु की आज्ञा लिये कहीं जाना ठीक नहीं है।’ इतना सुनते ही प्रभु कुछ सोचने लगे और बिना ही कुछ उत्तर दिये चुपचाप आश्रम की ओर लौट पड़े। और सब लोग भी प्रभु के पीछे-पीछे चले। आश्रम में पहुँचकर प्रभु ने दण्डी संन्यासी की विधि के अनुसार अपने गुरुदेव के चरणों में साष्टांग प्रणाम किया और भारती महाराज का आदेश पाकर उन्होंने उस रात्रि में वहीं गुरु-सेवा करते हुए निवास किया। संकीर्तन का रंग आज कल से भी बढ़कर रहा। इस प्रकार प्रभु संन्यास ग्रहण करके लोक शिक्षा के निमित्त गुरु-सेवा के माहात्म्य दिखाने लगे। प्रभु की वह रात्रि भी श्रीकृष्ण-कीर्तन और भागवत-चरित्रों के चिन्तन में व्यतीत हुई। |