श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी78. विष्णुप्रिया और गौरहरि
रोते-रोते अत्यन्त क्षीण स्वर में सुबकियाँ भरते हुए विष्णुप्रिया जी ने कहा- ‘अपने भाग्य को रो रही हूँ कि विधाता ने मुझे इतनी सौभाग्यशालिनी क्यों बनाया?’ प्रभु ने कुछ प्रेमविस्मित अधीरता-सी प्रकट करते हुए कहा-‘बात तो बताती नहीं, वैसे ही सुबकियाँ भर रही हो। मालूम भी तो होना चाहिए क्या बात है?’ उसी प्रकार रोते-रोते विष्णुप्रिया जी बोलीं- ‘मैंने सुना है आप घर-बार छोड़कर संन्यासी होंगे, हम सबको छोड़कर चले जायँगे?’ प्रभु ने हंसते हुए कहा- ‘तुमसे यह बे-सिर-पैर की बात कही किसने?’ विष्णुप्रिया जी ने अपनी बात पर कुछ जोर देते हुए और अपना स्नेह-अधिकार जताते हुए कहा- ‘किसी ने भी क्यों न कही हो। प्रभु ने मुसकराते हुए कहा-‘हाँ, कुछ-कुछ ठीक है?’ विष्णुप्रिया जी पर मानो वज्र गिर पड़ा, वे अधीर होकर प्रभु के चरणों में गिर पड़ी और फूट-फूटकर रोने लगीं। प्रभु ने उन्हें प्रेमपूर्वक हाथ का सहारा देते हुए उठाया और प्रेमपूर्वक आलिंगन करते हुए वे बोले- ‘तभी तो मैं तुमसे कोई बात नहीं। तुम एकदम अधीर हो जाती हो।’ हाय! उस समय की विष्णुप्रिया जी की मनोवेदना का अनुभव कौन कर सकता है? उनके दोनों नेत्रों से निरन्तर अश्रु प्रवाहित हो रहे थे, उसी वेदना के आवेश में रोते-राते उन्होंने कहा- ‘प्राणनाथ! मुझ दुखिया को सर्वथा निराश्रय बनाकर आाप क्या सचमुच चले जायँगे? क्या इस भाग्यहीना अबाला को अनाथिनी ही बना जायँगे? हाय! मुझे अपने सौभाग्यसुख का बड़ा भारी गर्व था। ऐसे त्रैलोक्य-सुन्दर जगद् वन्द्य अपने प्राण प्यारे पति को पाकर मैं अपने को सर्वश्रेष्ठ सौभाग्यशालिनी समझती थी। जिसके रूप-लावण्य को देखकर स्वर्ग की अप्सराएँ भी मुझसे ईर्ष्या करती थीं। नवद्वीप नारियाँ जिस मेरे सौभाग्य-सुख की सदा भूरि-भूरि प्रशंसा किया करती थीं, वे ही कालांतर में मुझे भाग्यहीन-सी द्वार-द्वार भटकते देखकर मेरी दशा पर दया प्रकट खेवेगा? पति ही स्त्रियों का एकमात्र आश्रय-स्थान है, पति के बिना स्त्रियों को और दूसरी गति हो ही क्या सकती है? प्रभु ने विष्णुप्रिया जी को समझाते हुए कहा- ‘देखो, संसार में सभी जीव प्रारब्धकर्मों के अधीन हैं। जितने दिन तक जिसका जिसके साथ संस्कार होता है, वह उतने ही दिन तक उसके साथ रह सकता है। सबके आश्रयदाता तो वे ही श्रीहरि है। तुम श्रीकृष्ण का सदा चिंतन करती रहोगी तो तुम्हें मेरे जाने का तनिक भी दु:ख न होगा।‘ |