श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
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सप्तदश अध्याय
विधिहीनमस्रष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् ।
उत्तर- जो यज्ञ शास्त्रविहित न हो या जिसके सम्पादन में शास्त्रविधि की कमी हो, अथवा जो शास्त्रोक्त विधान की अवहेलना करके मनमाने ढंग से किया गया हो, उसे ‘विधिहीन’ कहते हैं। प्रश्न- ‘अस्रष्टान्नम्’ पद कैसे यज्ञ का वाचक है? उत्तर- जिस यज्ञ में ब्राह्मण-भोजन या अन्नदान आदि के रूप में अन्न का त्याग नहीं किया गया हो, उसे ‘अस्रष्टान्न’ कहते हैं। प्रश्न- ‘मन्त्रहीनम्’ पर कैसे यज्ञ का बोधक है? उत्तर- जो यज्ञ शास्त्रोक्त मन्त्रों से रहित हो, जिसमें मन्त्र प्रयोग हुए ही न हों या विधिवत् न हुए हों, अथवा अवहेलना से त्रुटि रह गयी हो-उस यज्ञ को ‘मन्त्रहीन’ कहते हैं। प्रश्न- ‘अदक्षिणम्’ पद कैसे यज्ञ का वाचक है? उत्तर- जिस यज्ञ में यज्ञ कराने वालों को एव अन्यान्य ब्राह्मण-समुदाय को दक्षिणा न दी गयी हो, से ‘अदक्षिण’ कहते हैं। प्रश्न- ‘श्रद्धाविरहित’ कौन-सा यज्ञ है? उत्तर- जो यज्ञ बिना श्रद्धा के केवल मान, मद, मोह, दम्भ और अहंकार आदि की प्रेरणा से किया जाता है- उसे ‘श्रद्धाविरहित’ कहते हैं। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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