षोडश अध्याय
सम्बन्ध- इस प्रकार धारण करने के योग्य दैवीसम्पद् से युक्त पुरुष के लक्षणों का वर्णन करके अब त्याग करने योग्य आसुरीसम्पद् से युक्त पुरुष के लक्षण संक्षेप में कहे जाते हैं-
दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोध: पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ।। 4 ।।
हे पार्थ! दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी-सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं ।। 4 ।।
प्रश्न- ‘दम्भ’ किसको कहते हैं?
उत्तर- मान, बड़ाई, पूजा और प्रतिष्ठा के लिये, धनादि के लोभ से या किसी को ठगने के अभिप्राय से अपने को धर्मात्मा, भगवद्भक्त, ज्ञानी या महात्मा प्रसिद्ध करना अथा दिखाऊ धर्मपालन का, दानीपन का, भक्ति का, व्रत-उपवास आदि का, योगसाधन का और जिस-किसी भी रूप में रहने से अपना काम सधता हो, उसी का ढोंग रचना ‘दम्भ’ है।
प्रश्न- ‘दर्प’ किसको कहते हैं?
उत्तर- विद्या, धन, कुटुम्ब, जाति, अवस्था, बल और ऐश्वर्य आदि के सम्बन्ध से जो मन में घमण्ड होता है- जिसके कारण मनुष्य दूसरों को तुच्छ समझकर उसकी अवहेलना करता है, उसका नाम ‘दर्प’ है।
प्रश्न- ‘अभिमान’ क्या है?
उत्तर- अपने को श्रेष्ठ बड़ा या पूज्य समझना, मान, बड़ाई, प्रतिष्ठा और पूजा आदि की इच्छा रखना एवं इन सबके प्राप्त होने पर प्रसन्न होना ‘अभिमान’ है।
प्रश्न- ‘क्रोध’ किसको कहते हैं?
उत्तर- बुरी आदत के अथवा क्रोधी मनुष्यों के संग के कारण या किसी के द्वारा अपना तिरस्कार, अपकार या निन्दा किये जाने पर, मन के विरुद्ध कार्य होने पर, किसी के द्वारा दुर्वचन सुनकर या किसी का अन्याय देखकर- इत्यादि किसी भी कारण से अन्तःकरण में जो द्वेषयुक्त उत्तेजना हो जाती है- जिसके कारण मनुष्य के मन में प्रतिहिंसा के भाव जाग्रत हो उठते हैं, नेत्रों में लाली आ जाती है, होठ फड़कने लगते हैं, मुख की आकृति भयानक हो जाती है, बुद्धि मारी जाती है और कर्तव्य का विवेक नहीं रह जाता- इत्यादि किसी प्रकार की भी ‘उत्तेजित वृत्ति’ का नाम ‘क्रोध’ है।
प्रश्न- ‘पारुष्य’ किसका नाम है?
उत्तर- कोमलता के अत्यन्त अभाव का या कठोरता का नाम ‘पारुष्य’ है। किसी को गाली देना, कटुवचन कहना, ताने मारना आदि वाणी की कठोरता है, विनय का अभाव शरीर की कठोरता है तथा क्षमा और दया के विरुद्ध प्रतिहिंसा और क्रूरता के भाव को मन की कठोरता कहते हैं।
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