द्वितीय अध्याय
प्रश्न- ‘एते’ पद किनका वाचक है और ‘न व्यथयन्ति’ का क्या भाव है?
उत्तर- विषयों के साथ इन्द्रियों के जो संयोग हैं, जिनके लिये पूर्वश्लोक में ‘मात्रास्पर्शाः’ पद का प्रयोग किया गया है, उन्हीं का वाचक यहाँ ‘एते’ पद है और ‘न व्यथयन्ति’ से यह भाव दिखलाया है कि विषयों के संयोग-वियोग में राग-द्वेष और हर्ष-शोक न करने का अभ्यास करते-करते जब साधक की ऐसी स्थिति हो जाती है कि किसी भी इन्द्रिय का किसी भी भोग के साथ संयोग किसी प्रकार उसे व्याकुल नहीं कर सकता, उसमें किसी तरह का विकार उत्पन्न नहीं कर सकता, तब यह समझना चाहिये कि यह ‘धीर’ और सुख-दुःख में ‘समभाव वाला’ हो गया है।
प्रश्न- ‘वह मोक्ष के योग्य होता है’ इसका क्या भाव है?
उत्तर- इससे भगवान् ने यह दिखलाया है कि उपर्युक्त समभाव वाला पुरुष मोक्ष का- परमात्मा की प्राप्ति का पात्र बन जाता है और उसे शीघ्र ही अपरोक्षभाव से परमात्मा की प्राप्ति हो जाती है।
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