श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टम अध्याय
प्रश्न- जो लोग ब्रह्म के दिन-रात का परिमाण जानते हैं, वे काल के तत्त्व को जानने वाले हैं- इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- ब्रह्मा के दिन-रात्रि की अवधि जान लेने पर मनुष्य को ब्रह्मलोक और उसके अन्तर्वर्ती सभी लोकों की अनित्यता का ज्ञान हो जाता है। तब वह इस बात को भलीभाँति समझ लेता है कि जब लोक ही अनित्य हैं, तब वहाँ के भोग तो अनित्य और विनाशी हैं ही। और जो वस्तु अनित्य और विनाशी होती है, वह स्थायी सुख दे नहीं सकती। अतएव इस लोक और परलोक के भोगों में आसक्त होकर उन्हें प्राप्त करने की चेष्टा करना और मनुष्य जीवन को प्रमाद में लगाकर उसे व्यर्थ खो देना बड़ी भारी मूर्खता है। मनुष्य जीवन की अवधि बहुत ही थोड़ी है।[1] अतः भगवान् का प्रेमपूर्वक निरन्तर चिन्तन करके शीघ्र-से-शीघ्र उन्हें प्राप्त कर लेना ही बुद्धिमानी है और इसी में मनुष्य जन्म की सफलता है। जो इस प्रकार समझते हैं, वे ही दिन-रात्रिरूप काल के तत्त्व को जानकर अपने अमूल्य समय की सफलता का लाभा उठाने वाले हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 9। 33
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