श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तम अध्याय
बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् ।
उत्तर- जो सदा से हो तथा कभी नष्ट न हो, उसे ‘सनातन’ कहते हैं। भगवान् ही समस्त चराचर भूतप्राणियों के परम आधार हैं और उन्हीं से सबकी उत्पत्ति होती है। अतएव वे ही सबके ‘सनातन बीज’ हैं और इसीलिये ऐसा कहा है। नवें अध्याय के अठारहवें श्लोक में इसी को ‘अविनाशी बीज’ और दसवें के उनतालीसवें में ‘सब भूतों का बीज’ बतलाया गया है। प्रश्न- बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज मैं हूँ, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- सम्पूर्ण पदार्थों का निश्चय करने वाली और मन-इन्द्रियों को अपने शासन में रखकर उनका संचालन करने वाली अन्तःकरण की जो परिशुद्ध बोधमयी शक्ति है, उसे बुद्धि कहते हैं; जिसमें वह बुद्धि अधिक होती है, उसके बुद्धिमान् कहते हैं; यह बुद्धिशक्ति भगवान् की अपरा प्रकृति का ही अंश है अतएव भगवान् कहते हैं कि बुद्धिमानों का सार बुद्धि-तत्त्व मैं ही हूँ। और इसी प्रकार सब लोगों पर प्रभाव डालने वाली शक्तिविशेष का नाम तेजस् है; यह तेजस्तत्त्व जिसमें विशेष होता है, उसे लोग ‘तेजस्वी’ कहते हैं। यह तेज भी भगवान् की अपरा प्रकृति का ही एक अंश है, इसलिये भगवान् ने इन दोनों को अपना स्वरूप बतलाया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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