श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
षष्ठ अध्याय
उत्तर- ऐसा मानने से ‘धीमताम्’ शब्द व्यर्थ हो जाएगा। इसके अतिरिक्त भगवान् ने ‘दुर्लभतरम्’ पद से भी यह सूचित किया है कि ऐसा जन्म पवित्र श्रीमानों के घरों की अपेक्षा भी अत्यन्त दुर्लभ है। अतएव यहाँ ‘धीमताम्’ विशेषण से युक्त ‘योगिनाम्’ पद में आये हुए ‘योगी’ शब्द का अर्थ ‘ज्ञानवान् सिद्ध योगी’ मानना ही ठीक है। प्रश्न- योगियों के कुल में होने वाले जन्म को अत्यन्त दुर्लभ क्यों बतलाया गया है? उत्तर- परमार्थ साधन (योग साधन) की जितनी सुविधा योगियों के कुल में जन्म लेने पर मिल सकती है, उतनी स्वर्ग में, श्रीमानों के घरों में अथवा अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकती। योगियों के कुल में तदनुकूल वातावरण के प्रभाव से मनुष्य प्रारम्भिक जीवन में ही योगसाधन में लग सकता है, दूसरी बात यह है कि ज्ञानी के कुल में जन्म लेने वाला आज्ञानी नहीं रहता, यह सिद्धान्त श्रुतियों से भी प्रमाणित है।[1] यदि महात्मा पुरुषों की महिमा और प्रभाव की दृष्टि से देखा जाय तो महात्माओं के कुल में जन्म होने पर तो कहना ही क्या है, महात्माओं का संग ही दुर्लभ, अगम्य एवं अमोघ माना गया।[2] इसीलिये ऐसे जन्म को अत्यन्त दुर्लभ बतलाना उचित ही है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नास्याब्रह्मवित्कुल भवति। तरति शोकं तरति पाप्मानं गुहाग्रन्थिभ्यो विमुक्तोऽमृतो भवति।। (मुण्डक-उ. 3।2। 9) ‘इसके (ब्रह्मज्ञानी के) कुल में कोई अब्रह्मवित् नहीं होता, वह शोक एवं पाप से तर जाता है। हृदयग्रन्थि से विमुक्त होकर अमर हो जाता है अर्थात् सदा के लिये जन्म-मृत्यु से छूट जाता है।
- ↑ ‘महत्सग्ङस्तु दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्च।’ (नारदभक्तिसूत्र 39) ‘परंतु महात्माओं का संग दुर्लभ, अगम्य और अमोघ है।’
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