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षष्ठ अध्याय
प्रश्न- बहुत सोने वाले और सदा जागने वाले का ध्यानयोग सिद्ध नहीं होता, इसमें क्या हेतु है?
उत्तर- उचित मात्रा में नींद ली जाय तो उससे थकावट दूर होकर शरीर में ताजगी आती है; परंतु वही नींद यदि आवश्यकता से अधिक ली जाय तो उससे तमोगुण बढ़ जाता है, जिससे अनवरत आलस्य घेरे रहता है और स्थिर होकर बैठने में कष्ट मालूम होता है। इसके अतिरिक्त अधिक सोने में मानव-जीवन का अमूल्य समय तो नष्ट होता ही है। इसी प्रकार सदा जागते रहने से थकावट बनी रहती है। कभी ताजगी नहीं आती। शरीर, इन्द्रिय और प्राण शिथिल हो जाते हैं, शरीर में कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं और सब समय नींद तथा आलस्य सताया करते हैं। इस प्रकार बहुत सोना और सदा जागते रहना दोनों ही ध्यानयोग के साधन में विघ्न करने वाले होते हैं। अतएव ध्यानयोगी को, शरीर स्वस्थ रहे और ध्यानयोग के साधन में विघ्न उपस्थित न हो-इस उद्देश्य से अपने शरीर की स्थिति, प्रकृति, स्वास्थ्य और अवस्था का खयाल रखते हुए न तो आवश्यकता से अधिक सोना ही चाहिये औन न सदा जागते ही रहना चाहिये।
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