श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
पंचम अध्याय
उत्तर- भगवान् को इनमें से किसी एक लक्षण से युक्त समझने वाले को भी शान्ति मिल जाती है फिर तीनों लक्षणों से युक्त समझने वाले की तो बात ही क्या है? क्योंकि जो किसी एक लक्षण को भी भली-भाँति समझ लेता है, वह अनन्यभाव से भजन किये बिना रह ही नहीं सकता। भजन के प्रभाव से उस पर भगवत्कृपा बरसने लगती है और भगवत्कृपा से वह अत्यन्त ही शीघ्र भगवान् के स्वरूप, प्रभाव, तत्त्व तथा गुणों को समझकर पूर्ण शान्ति को प्राप्त हो जाता है। अहा! उस समय कितना आनन्द और कैसी शान्ति प्राप्त होती होगी, जब मनुष्य यह जानता होगा कि ‘सम्पूर्ण देवताओं और महर्षियों से पूजित भगवान्, जो समस्त यज्ञ-तपों के एकमात्र भोक्ता हैं और सम्पूर्ण ईश्वरों के तथा अखिल ब्रह्माण्डों के परम महेश्वर हैं, मेरे परमप्रेमी मित्र हैं! कहाँ क्षुद्रतम और नगण्य मैं, और कहाँ अपनी अनन्त अचिन्त्य महिमा में नित्यस्थित महान् महेश्वर भगवान्! अहा! मुझसे अधिक सौभाग्यवान और कौन होगा?’ और उस समय वह हृदय की किस अपूर्व कृतज्ञता को लेकर, किस पवित्र भाव धारा से सिक्त होकर, किस आनन्दार्णव में डूबकर भगवान् के पावन चरणों में सदा के लिये लोट पड़ता होगा! प्रश्न- भगवान् सब यज्ञ और तपों के भोक्ता, सब लोकों के महेश्वर और सब प्राणियों के परम सुहृद् हैं- इस बात को समझने का क्या उपाय है? किस साधन से मनुष्य इस प्रकार भगवान् के स्वरूप, प्रभाव, तत्त्व और गुणों को भली-भाँति समझकर उनका अनन्य भक्त हो सकता है? उत्तर- श्रद्धा और प्रेम के साथ महापुरुषों का संग, सत् शास्त्रों का श्रवण-मनन और भगवान् की शरण होकर अत्यन्त अत्सुकता के साथ उनसे प्रार्थना करने पर उनकी दया से मनुष्य भगवान् के स्वरूप, प्रभाव, तत्त्व और गुणों को समझकर उनका अनन्य भक्त हो सकता है। प्रश्न - यहाँ ‘माम’ पद से भगवान् ने अपने किस स्वरूप का लक्ष्य कराया है? उत्तर- जो परमेश्वर अज, अविनाशी और सम्पूर्ण प्राणियों के महान् ईश्वर होते हुए भी समय-समय पर अपनी प्रकृति को स्वीकार करके लीला करने के लिये योगमाया से संसार में अवतीर्ण होते हैं और जो श्रीकृष्णरूप में अवतीर्ण होकर अर्जुन को उपदेश दे रहे हैं, उन्हीं निर्गुण, सगुण, निराकार, साकार और अव्यक्त-व्यकतस्वरूप, सर्वरूप, परब्रह्म परमात्मा, सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापी, सर्वाधार और सर्वलोकमहेश्वर समग्र परमेश्वर को लक्ष्य करके ‘माम्’ पद का प्रयोग किया गया है। ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे कर्मसंन्यासयोगो नाम पन्चमोऽध्यायः ।। 5।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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