श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
पंचम अध्याय
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
उत्तर- ‘पण्डिताः’ यह पद तत्त्वज्ञानी महात्मा सिद्ध पुरुषों का वाचक है। प्रश्न- विद्याविनयसम्पन्न ब्राह्मण में तथा गौ, हाथी, कुत्ते, और चाण्डाल में समदर्शन का क्या भाव है? उत्तर- तत्त्वज्ञानी सिद्ध पुरुषों का विषमभाव सर्वथा नष्ट हो जाता है। उनकी दृष्टि में एक सच्चिदानन्दघन परबह्म परमात्मा से अतिरिक्त अन्य किसी की सत्ता नहीं रहती, इसलिये उनका सर्वत्र समभाव हो जाता है। इसी बात को समझाने के लिये मनुष्यों में उत्तम-से-उत्तम श्रेष्ठ ब्राह्मण, नीच-से-नीच चाण्डाल एवं पशुओं में उत्तम गौ, मध्यम हाथी और नीच-से-नीच कुत्ते का उदाहरण देकर उनके समत्व का दिग्दर्शन कराया गया है। इन पाँचों प्राणियों के साथ व्यवहार में विषमता सभी को करनी पड़ती है। जैसे गौ का दूध सभी पीते हैं, पर कुतिया का दूध कोई भी मनुष्य नहीं पीता। वैसे ही हाथी पर सवारी की जा सकती है, कुत्ते पर नहीं की जा सकती। जो वस्तु शरीर-निर्वाहार्थ पशुओं के लिये उपयोगी होती है, वह मनुष्यों के लिये नहीं हो सकती। श्रेष्ठ ब्राह्मण का पूजन-सत्कारादि करने की शास्त्रों की आज्ञा है, चाण्डाल के लिये नहीं है। अतः इनका उदाहरण देकर भगवान् ने यह बात समझायी है कि जिनमें व्यावहारिक विषमता अनिवार्य है उनमें भी ज्ञानी पुरुषों का समभाव ही रहता है। कभी किसी भी कारण से कहीं भी उनमें विषम भाव नहीं होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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