श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- किसी भी क्रिया के भावी परिणाम की सूचना देने वाले शकुनादि चिह्नों को लक्षण कहा जाता है, श्लोक में ‘निमित्तानि’ पद इन्हीं लक्षणों के लिये आया है। अर्जुन लक्षणों को विपरीत बतलाकर यह भाव दिखला रहे हैं कि असमय में ग्रहण होना, धरती का काँप उठना और आकाश से नक्षत्रों का गिरना आदि बुरे शकुनों से भी यही प्रतीत होता है कि इस युद्ध का परिणाम अच्छा नहीं होगा। इसलिये मेरी समझ से युद्ध न करना ही श्रेयस्कर है। प्रश्न- युद्ध में स्वजन-समुदाय को मारकर कल्याण भी नहीं देखता, इस कथन का क्या अभिप्राय है? उत्तर- अर्जुन के कथन का भाव यह है कि युद्ध में अपने सगे-सम्बन्धियों के मारने से किसी प्रकार का भी हित होने की सम्भावना नहीं है; क्योंकि प्रथम तो आत्मीय स्वजनों के मारने से चित्त में पश्चात्तापजनित क्षोभ होगा, दूसरे उनके अभाव में जीवन दुःखमय हो जायगा और तीसरे उनके मारने से महान् पाप होगा। इन दृष्टियों से न इस लोक में हित होगा और न परलोक में ही। अतएव मेरे विचार से युद्ध करना किसी प्रकार भी उचित नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज