श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
प्रथम अध्याय
उत्तर- शिखण्डी और धृष्टद्युम्न दोनों ही राजा द्रुपद के पुत्र थे। शिखण्डी बड़े थे, धृष्टद्युम्न छोटे। पहले जब राजा द्रुपद के कोई सन्तान नहीं थी, तब उन्होंने सन्तान के लिये आशुतोष भगवान् शंकर की उपासना की थी। भगवान् शिव जी के प्रसन्न होने पर राजा ने उनसे सन्तान की याचना की, तब शिव जी ने कहा- ‘तुम्हें एक कन्या प्राप्त होगी।’ राजा द्रुपद बोले- ‘भगवन्! मैं कन्या नहीं चाहता, मुझे तो पुत्र चाहिये।’ इस पर शिवजी ने कहा- ‘वह कन्या ही आगे चलकर पुत्ररूप में परिणत हो जायगी।’ इस वरदान के फलस्वरूप राजा द्रुपद के घर कन्या उत्पन्न हुई। राजा को भगवान् शिव के वचनों पर पूरा विश्वास था, इसलिये उन्होंने उसे पुत्र के रूप में प्रसिद्ध किया। रानी ने भी कन्या को सबसे छिपाकर असली बात किसी पर प्रकट नहीं होने दी। उस कन्या का नाम भी मर्दों का-सा ‘शिखण्डी’ रखा और उसे राजकुमारों की-सी पोशाक पहनाकर यथाक्रम विधिपूर्वक विद्याध्ययन कराया। समय पर दशार्ण देश के राजा हिरण्यवर्मा की कन्या से उसका विवाह भी हो गया। हिरण्यकर्मा की कन्या जब ससुराल में आयी तब उसे पता चला कि शिखण्डी पुरुष नहीं है, स्त्री है; तब वह बहुत दुःखित हुई और उसने सारा हाल अपनी दासियों द्वारा अपने पिता राजा हिरण्यवर्मा को कहला भेजा। राजा हिरण्यवर्मा को द्रुपद पर बड़ा ही क्रोध आया और उसने द्रुपद पर आक्रमण करके उन्हें मारने का निश्चय कर लिया। इस संवाद को पाकर राजा द्रुपद युद्ध से बचने के लिये देवाराधन करने लगे। इधर पुरुषवेषधारी उस कन्या को अपने कारण पिता पर इतनी भयानक विपत्ति आयी देखकर बड़ा दुःख हुआ और वह प्राण-त्याग का निश्चय करके चुपचाप घर से निकल गयी। वन में उसकी स्थूणाकर्ण नामक एक ऐश्वर्यवान् यक्ष से भेंट हुई। यक्ष ने दया करके कुछ दिनों के लिये उसे अपना पुरुषत्व देकर बदले में उसका स्त्रीत्व ले लिया। इस प्रकार शिखण्डी स्त्री से पुरुष हो गया और अपने घर पर आकर माता-पिता को आश्वासन दिया और श्वशुर हिरण्यवर्मा को अपने पुरुषत्व की परीक्षा देकर उन्हें शान्त कर दिया। पीछे से कुबेर के शाप से स्थूणाकर्ण जीवनभर स्त्री रह गये, इससे शिखण्डी को पुरुषत्व लौटाना नहीं पड़ा और वे पुरुष बने रहे। भीष्मपितामह को यह इतिहास मालूम था, इसी से वे उन पर शस्त्र-प्रहार नहीं करते थे। वे शिखण्डी भी बड़े शूरवीर महारथी योद्धा थे। इन्हीं को आगे करके अर्जुन ने पितामह भीष्म को मारा था। प्रश्न- इन सभी ने अलग-अलग शंख बजाये, इस कथन में भी कोई खास बात है? उत्तर- ‘सर्वशः’ शब्द के द्वारा संजय यह दिखलाते हैं कि श्रीकृष्ण, पाँचों पाण्डव और काशिराज आदि प्रधान योद्धाओं के- जिनके नाम लिये गये हैं- अतिरिक्त पाण्डव सेना में जितने भी रथी, महारथी और अतिरथी वीर थे, सभी ने अपने-अपने शंख बजाये। यही खास बात है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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