श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
अष्टादश अध्याय
प्रश्न- उपर्युक्त प्रकार से संन्यास और त्याग का तत्त्व समझाने के लिये भगवान् ने किन-किन श्लोकों में कौन-कौन सी बात कही है? उत्तर- इस अध्याय के तेरहवें से सत्रहवें श्लोक तक संनयास (ज्ञानयोग) का स्वरूप बतलाया है। उन्नीसवें से चालीसवें श्लोक तक जो सात्त्विक भाव और कर्म बतलाये हैं, वे इसके साधन में उपयोगी हैं; और राजस, तामस इसके विरोधी हैं। पचासवें से पचपनवें तक उपासना सहित सांख्य-योग की वधि और फल बतलाया है तथा सत्रहवें श्लोक में केवल सांख्य योग का साधन करने का प्रकार बतलाया है। इसी प्रकार छठे श्लोक में (फलासक्ति के त्यागरूप) कर्मयोग का स्वरूप बतलाया है। नवें श्लोक में सात्त्विक त्याग के नाम से केवल कर्मयोग के साधन की प्रणाली बतलायी है। सैंतालीसवें और अड़तालीसवें श्लोकों में स्वधर्म के पालन को इस साधन में उपयोगी बतलाया है और सातवें तथा आठवें श्लोकों में वर्णित तामस, राजस त्याग को इसमें बाधक बतलाया है। पैंतालीसवें और छियालीसवें श्लोकों में भक्तिमिश्रित कर्मयोग का और छप्पनवें से छाछठवें श्लोक तक भक्तिप्रधान कर्मयोग का वर्णन है। छियालीसवें श्लोक में लौकिक और शास्त्रीय समस्त कर्म करते हुए भक्तिमिश्रित कर्मयोग के साधन करने की रीति बतलाई है और सत्तावनवें श्लोक में भगवान् ने भक्तिप्रधान कर्मयोग के साधन करने की रीति बतलायी है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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