श्रीमद्भगवद्गीता तत्त्वविवेचनी हिन्दी-टीका -जयदयाल गोयन्दका
सप्तदश अध्याय
तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतप:क्रिया: ।
उत्तर- इससे भगवान् ने प्रधानतया नाम की महिमा दिखलायी है। उनका यहाँ यह भाव है कि जिस परमेश्वर से इन यज्ञादि कर्मों की उत्पत्ति हुई है, उसका नाम होने के कारण ओंकार के उच्चारण से समस्त कर्मों का अंगवैगुण्य दूर हो जाता है तथा वे पवित्र और कल्याणप्रद हो जाते हैं। यह भगवान् के नाम की अपार महिमा है। इसलिये वेदवादी अर्थात् वेदोक्त मन्त्रों के उच्चारपूर्वक यज्ञादि कर्म करने के अधिकारी विद्वान, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों के यज्ञ, दान तप आदि समस्त शास्त्रविहित शुभ कर्म सदा ओंकार के उच्चारणपूर्वक ही होते हैं। वे कभी किसी काल में कोई भी सुभ कर्म भगवान् के पवित्र नाम ओंकार का उच्चारण किये बिना नहीं करते। अतएव सबको ऐसा ही करना चाहिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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