द्वितीय अध्याय
प्रश्न- ‘वाचम’ के साथ ‘इमाम्’, ‘याम्’ और ‘पुष्पिताम्’ विशेषण देकर क्या भाव दिखलाया है?
उत्तर- ‘इमाम्’ और ‘याम्’ विशेषणों से यह भाव दिखलाया गया है कि वे अपने को पण्डित मानने वाले मनुष्य जो दूसरों को ऐसा कहा करते हैं कि स्वर्ग के भोगों से बढ़कर अन्य कुछ है ही नहीं तथा जन्मरूप कर्मफल देने वाली जिस वेदवाणी का वे वर्णन करते हैं, वही वाणी उनके और उनके उपदेश सुनने वालों के चित्त का अपहरण करने वाली होती है, तथा ‘पुष्पिताम्’ विशेषण से यह भाव दिखलाया है कि उस वाणी में यद्यपि वास्तव में विशेष महत्त्व नहीं है, वह नाशवान् भोगों के नाम मात्र क्षणिक सुख का ही वर्णन करती है तथापि वह टेसू के फूल की भाँति ऊपर से बड़ी रमणीय और सुन्दर होती है, इस कारण सांसारिक मनुष्य उसके प्रलोभन में पड़ जाते हैं?
प्रश्न- यहाँ ‘व्यवसायात्मिका’ विशेषण के सहित ‘बुद्धिः’ पद किसका वाचक है और समाधि का अर्थ परमात्मा कैसे किया गया है तथा जिसका चित्त उपर्युक्त पुष्पिता वाणी द्वारा हरा गया है एवं जो भोग और ऐश्वर्य में अत्यन्त आसक्त हैं, उन पुरुषों की परमात्मा में निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती- इस कथन का क्या भाव है?
उत्तर- इकतालीसवें श्लोक में जिसके लक्षण बतलाये गये हैं उसी निश्चयात्मिका बुद्धि का वाचक यहाँ ‘व्यवसायात्मिका’ विशेषण के सहित ‘बुद्धिः’ पद है। ‘समाधीयते अस्मिन् बुद्धिः इति समाधिः’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार यहाँ समाधि का अर्थ परमात्मा किया गया है तथा उपर्युक्त वाक्य से यहाँ यह भाव दिखलाया है कि उन मनुष्यों का चित्त भोग और ऐश्वर्य में आसक्त रहने के कारण हर समय अत्यन्त चंचल रहता है और वे अत्यन्त स्वार्थपरायण होते हैं; अतएव उनकी परमात्मा में अटल और स्थिर निश्चय वाली बुद्धि नहीं होती।
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