श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी91. श्रीगोपीनाथ क्षीरचोर
हमारे यहाँ का यह नियम है कि हमारे यहाँ का यह नियम है कि हमारे ग्राम के समीप कोई भुखा नहीं सोने पाता। जो मांगकर खाते हैं, उन्हें हम रोटी दे देते हैं और जिनका अयाचित व्रत हैं, उन्हें उनकी इच्छा के अनुसार दूध-फल अथवा अन्न के बने पदार्थ दे जाते हैं। आप इस दूध को पी लें, मैं फिर आकर इस पात्र को ले आऊँगा।’ इतना कहकर वह बालक चला गया। पुरी महाशय ने उस दूध को पीया। इतना स्वादिष्ट दूध उन्होंने अपने जीवन में कभी नहीं पीया था, वे मन में अत्यन्त ही प्रसन्न हाते हुए उस दूध को पीने लगे। उनके हृदय में उस साँवले ग्वाले के लड़के की सूरत गड़-सी गयी थी, वे बार-बार उसका चिन्तन करने लगे। दूध पीकर पात्र को पृथ्वी पर रख दिया और उस ग्वाल-कुमार की प्रतीक्षा में बैठे रहे। आधी रात्रि बैठे-ही-बैठे बीत गयी, किन्तु वह ग्वाल-कुमार नहीं लौटा। अब तो पुरी महाराज की उत्सुकता उस लड़के को देखने की अधिकाधिक बढ़ने लगी। उसी स्थिति में उन्हें कुछ तन्द्रा-सी आ गयी। उसी समय सामने वही बालक खड़ा हुआ दिखायी देने लगा। उसने हंसते-हंसते कहा- पुरी ! मैं बहुत दिन से तुम्हारे आने की प्रतीक्षा कर रहा था। तुम आ गये, यह अच्छा ही हुआ। ग्वाले के लड़के के वेष में ही तुम्हें दुग्ध दे गया था। अब तुम मेरी फिर से यहाँ प्रतीक्षा करो। मैं यहाँ इस पास की झाड़ी के नीचे दबा हुआ हूँ। पहले मेरा यहाँ मन्दिर था, मेरा पुजारी म्लेच्छों के भय से मुझे इस झाड़ी के नीचे गाड़कर भाग गया था। तब से मैं इस झाड़खण्ड में ही दबा हुआ पड़ा हूँ। अब तुम मुझे यहाँ से निकालकर मेरी विधिवत पूजा करो। मेरा नाम ‘श्री गोपाल’ है, मैंने ही इस गोवर्धन को धारण किया था, तुम इसी नाम से मेरी प्रतिष्ठा करना।’ इतना कहकर वह बालक पुरीक का हाथ पकड़कर उस कुंज के समीप ले गया और उन्हें वह स्थान दिखा दिया। आँखे खुलने पर पुरी महाराज चारों ओर देखने लगे, किन्तु वहाँ कोई नहीं था। प्रात: काल उन्होंने ग्राम के लोगों को बुलाकर सब वृतान्त कहा और श्रीगोपाल के बताये हुए स्थान को उन्होंने खुदवाया। बहुत दूरी खुदने पर उसमें से एक बहुत ही सुन्दर श्यामवर्ण की सुन्दर सी मन को मोहने वाली मूर्ति निकली। पुरी ने उसी समय ग्रामवासियों से एक छप्पर छवाकर उसमें एक ऊँचा-सा आसन बनाया और उसके उपर उस श्री गोपाल की मूर्ति को स्थापित किया। मूर्ति को स्थापित करके उन्होंने विधिवत भगवान को पंचामृत से स्नान कराया, फिर शीतल जल से भगवान के श्रीविग्रह को खूब मल-मलकर धोया। सुगन्धित चन्दन घिसकर सम्पूर्ण शरीर पर लेपन किया और धूप, दीप, नैवेद्य तथा वन्य फल-फूलों से उनकी यथाविधि पूजा की। |