श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी15. चांचल्य
किं मिष्टं सुतवचनं मिष्टतरं किं तदेव सुतवचनम्। इतनी चंचलता करने पर भी मिश्र-दम्पति का प्रेम निमाई के प्रति अधिकाधिक बढ़ता ही जाता था। यही नहीं, किन्तु निमाई की चंचलता में माता-पिता को एक अपूर्व आनन्द आता था। मिश्र जी तो मनुष्य स्वभाव के कारण कभी-कभी बहुत चंचलता से ऊब कर नाराज भी हो जाते, किन्तु माता का हृदय तो सदा बच्चे की बातें सुनने के लिये छटपटाता ही रहता। सच है, बच्चे की बोली में मोहिनी विद्या है। संसार में बच्चे की तोतली बोली से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मिल ही नहीं सकती। देखा गया है, प्रायः माता का सबसे छोटी सन्तान पर बहुत अधिक ममत्व होता है। निमाई मिश्र जी की वृद्धावस्था में उत्पन्न हुए थे, इसीलिये उनका भी इनके प्रति आवश्यकता से अधिक स्नेह था। इतनी चंचलता करने पर भी मिश्र जी उन्हें बहुत अधिक डाँटते-फटकारते नहीं थे। इसलिये ये मिश्र जी के सामने भी चंचलता करने में नहीं चूकते थे। सबसे अधिक तो ये माता के सामने उपद्रव करते। माता के सामने इन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता था। पिता के सामने थोड़ा संकोच करते और भाई विश्वरूप के सामने तो ये कभी भी उपद्रव नहीं करते थे, उनसे तो ये बहुत ही अधिक संकोच करते थे। विश्वरूप भी इनसे अत्यधिक स्नेह करते, किन्तु वह स्नेह अव्यक्त होता था। प्रायः वे अपने प्रेम को लोगों के सामने प्रकट नहीं करते थे। निमाई भी उनका मन-ही-मन बहुत आदर करते थे। उनके आते ही भोले-भाले बालक की तरह चुपचाप बैठ जाते या बाहर उठ जाते। अब ये पिता जी के साथ गंगा-स्नान करने को भी जाने लगे। विश्वरूप सबकी धोती, तैल और भीगे आँवले लेकर आगे-आगे चलते और मिश्र जी उनके पीछे होते। निमाई कभी तो पिता जी की उँगली पकड़कर चलते और कभी भाई का वस्त्र पकड़े हुए चलते। रास्ते में चलते हुए इधर-उधर देखते जाते। पिता जी से भाँति-भाँति के ऊटपटाँग प्रश्न भी करते जाते। मिश्र जी किसी का तो उत्तर दे देते और किसी को टाल देते। कभी-कभी आप दोनों से अलग होकर चलते। इस पर विश्वरूप इन्हें बुलाकर झट से गोद में ले लेते। गंगा-स्नान करके मिश्र जी तथा विश्वरूप सन्ध्या-वन्दन करते, ये भी बैठकर उनकी नकल करते। जैसे वे लोग जल छिड़कते, ये भी जल छिड़कते, जब वे आचमन करते, ये भी आचमन करते तथा सूर्य को अर्घ देने पर ये भी खड़े होकर सूर्य को अर्घ देते। कभी-कभी तैल लगाकर स्नान करने के अनन्तर फिर आप बालू में लोट जाते। पिता फिर से इन्हें स्नान कराते। घर आकर ये सब बातें अपनी माता से कहते। स्त्रियाँ पूछतीं- 'बेटा! अच्छा तुमने सन्ध्या कैसे की?’ तब आप पद्मासन लगाकर बैठ जाते और आँखे बंद कर धीरे-धीरे ओष्ठ हिलाने लगते। कभी-कभी नाक बंद करके प्राणायाम का अभिनय करते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मीठी वस्तु क्या है? पुत्र की मीठी वाणी। सबसे मीठी वस्तु क्या है? वही पुत्र की मधुर वाणी। अत्यन्त मीठी से-भी-मीठी वस्तु क्या है? वेद-शास्त्रों द्वारा यही सुना गया है कि कानों में खूब अच्छी तरह गूँजती हुई पुत्र की वाणी ही सबसे मीठी है। अर्थात पुत्र की वाणी से मीठी वस्तु कोई भी नहीं।