श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी12. अलौकिक बालक
स्वगर्भशुक्तिनिर्भिन्नं सुवृत्तं सुतमौक्तिकम्। शची-रूपी सीपी के भाग्य की सराहना कौन कर सकता है, जिसमें निमाई के समान संसार को सुख-शान्ति प्रदान करने वाला बहुमूल्य मोती पैदा हुआ? शची की समझ में स्वयं नहीं आता था कि यह बालक कैसा है? इसकी सभी बातें दिव्य हैं, सभी चेष्टाएँ अलौकिक हैं। देखने में तो यह बालक-सा प्रतीत होता है, किन्तु बातें ऐसी करता है कि अच्छे-अच्छे समझदार भी उन्हें सरलतापूर्वक नहीं समझ सकते। कभी तो उसे भ्रम होता और सोचने लगती यह कोई छद्म-वेष बनाये महापुरुष या देवता मेरे यहाँ क्रीड़ा कर रहे हैं और कभी-कभी मातृस्नेह के कारण सब कुछ भूल जातीं। एक दिन माता ने देखा कि घर में बड़े जोरों का प्रकाश हो रहा है। बहुत-से तेजपूर्ण दिव्य-दिव्य पुरुष निमाई की पूजा और स्तुति कर रहे हैं। यह देखकर माता को बड़ा भय मालूम हुआ। वे जल्दी से घर के भीतर गयीं। वहाँ जाकर उन्होंने देखा निमाई सुखपूर्वक शयन कर रहे हैं। यह बात शची देवी ने अपने पति पण्डित जगन्नाथ मिश्र से कही। मिश्र जी ने कहा- ‘हम तो पहले से ही जानते थे, यह बालक कोई साधारण पुरुष नहीं है।’ इसी प्रकार एक दिन आँगन में ध्वजा, वज्र, कुश आदि शुभ चिह्नों से चिह्नित छोटे-छोटे पैरों को देखकर शची देवी विस्मित हो गयीं। उन्होंने वे चरणचिह्न मिश्र जी को भी दिखाये। भाग्यवान दम्पती ने उन चरणों की धूलि अपने मस्तक पर चढ़ायी। मिश्र जी कहने लगे- ‘मालूम पड़ता है, घर के बालगोपाल ठाकुर सशरीर आँगन में घूमते हैं। यह हम लोगों का परम सौभाग्य है।’ इतने में ही उन्होंने निमाई के छोटे-छोटे पैरों में भी वे ही चिह्न देखे। मिश्र जी पण्डित नीलाम्बर चक्रवर्ती को बुलाकर लाये और निमाई के हाथ तथा पैरों की रेखा उन्हें दिखायी। सब देखकर चक्रवर्ती महाशय बोले- ‘हमने उसी दिन जन्मकुण्डली ही देखकर कह दिया था कि यह बालक कोई साधारण बालक नहीं है। भविष्य में इसके द्वारा संसार का बहुत कल्याण होगा।’ एक दिन मिश्र जी ने निमाई से कहा- ‘बेटा! भीतर से पुस्तक तो ले आ।’ निमाई हँसते हुए भीतर चले गये। मिश्र जी को ऐसा प्रतीत हुआ मानो नूपुर की सुमधुर ध्वनि निमाई के पैरों में से होती जा रही है। उन्होंने शची देवी जी से पूछा- ‘निमाई को नूपुर तुमने पहना दिये हैं क्या?’ शची देवी ने उत्तर दिया- ‘नहीं तो, नूपुर तो मैंने नहीं पहनाये। देखते नहीं हो। उसके पैरों में सिवाय कडूलों के और कुछ भी नहीं है।’ मिश्र जी सब समझकर चुप हो गये। निमाई पुस्तक रखकर चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अपनी माता के गर्भ रूपी सीपी को निर्भिन्न करके अच्छे गुणों वाला पुत्र रत्न जो कि अपने वंश की श्रीको बढ़ाने वाला है, ऐसे सौभाग्यशाली सुतका मन्द भाग्य वाले पुरुषों के यहाँ उत्पन्न होना अत्यन्त ही दुर्लभ है।