श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी5. व्यासोपदेश
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे। संसार का यावत ज्ञान है, सभी व्यासोच्छिष्ट कहा जाता है। भगवान व्यास साक्षत विष्णु हैं। बस, इतना ही अन्तर है कि इनके चार की जगह दो ही भुजा हैं, ये अचतुर्मुख ब्रह्मा हैं और दो नेत्र वाले शिव हैं। चौबीस अवतारों में भगवान व्यासदेव जी भी एक अवतार हैं, ये प्रत्येक द्वापर के अन्त में प्रकट होकर लोककल्याण के निमित्त एक वेद को चार भागों में विभक्त करते हैं। इस युग में महर्षि पराशर के वीर्य से तथा सत्यवती के गर्भ से भगवान व्यासदेव का जन्म हुआ है। इन्होंने एक वेद को चार भागों में विभक्त किया, इसीलिये इन्हें वेदव्यास भी कहते हैं। जब देखा कि कलियुग के जीव इतने पर भी ज्ञान से वंचित रहेंगे तो इन्होंने सम्पूर्ण जीवों के कल्याण के निमित्त महाभारत की रचना की और अठारह पुराणों का प्रचार किया। भगवान व्यासकृत इन सभी ग्रन्थों में ऐसा कोई भी इहलौकिक तथा पारलौकिक विषय नहीं रहा है जिसका वर्णन भगवान व्यासदेव ने न किया हो। राजधर्म नीतिधर्म, वृत्तिधर्म, वर्णाश्रमधर्म, मोक्षधर्म, सृष्टि, स्थिति, प्रलय, शौच, सदाचार, गति, अगति, कर्तव्य, अकर्तव्य सभी विषयों का वर्णन भगवान व्यासदेव ने किया है। संसार में कोई भी ऐसी बात जिसका कोई कभी भी अनुभव कर सकता है, उसका सूत्ररूप से वर्णन भगवान व्यासदेव पहले ही कर चुके हैं। भगवान व्यासदेव ने बताया है कि काल की गति अव्याहत और एकरस है। जो पैदा हुआ है, उसका कभी-न-कभी अन्त अवश्य ही होगा। दिन-रात्रि सबके लिये समानरूप से आते-जाते हैं। बुद्धिमान अपने समय का उपयोग काव्यशास्त्रों के अध्ययन और मनन में करते हैं, जो मूर्ख हैं वे सोने में, खाने-पीने या दूसरों की निन्दा-स्तुति में अपने समय का दुरुपयोग करते हैं इसलिये व्यासदेव जी उपदेश करते हैं कि मूर्खों की भाँति समय बिताना ठीक नहीं है। अपने समय का दुरुपयोग कभी भी मत करो, उसका सदा सदुपयोग ही करते रहो। सदुपयोग कैसे हो? इसके लिये वे उपदेश करते हैं- इतिहासपुराणनि तथाख्यानानि यानि च। मनुष्यों को इतिहास, पुराण, दूसरी सुन्दर कहानियाँ और महात्माओं के जीवन-चरित्र इनका नित्यप्रति श्रवण करना चाहिये। अब आइये, इस बात पर थोड़ा विचार करें कि इन उपर्युक्त विषयों के श्रवण से क्या लाभ और इनमें यथार्थ वस्तु क्या है? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ व्यास रूप विष्णु को नमस्कार है, विष्णु रूप व्यासदेव को नमस्कार है, वेदों के विभाग करने वाले व्यास भगवान को नमस्कार है तथा वसिष्ठगोत्र में उत्पन्न हुए पराशर के पुत्र कृष्णद्वैपायन को नमस्कार है।