श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी91. श्रीगोपीनाथ क्षीरचोर
अच्छा, तो मैं क्षीरचोर श्रीगोपीनाथ के उस पुण्य आख्यान को आप लोगों के सामने कहता हूँ, आप सभी लोग ध्यानपूर्वक सुनें।’ प्रभु की ऐसी बात सुनकर सभी भक्त उत्सुकतापूर्वक प्रभु के मुख की ओर देखने लगे। और भी दस-बीस भद्र पुरुष वहाँ आ गये थे, वे भी प्रभु के मुख से क्षीरचोर भगवान की कथा सुनने के निमित बैठ गये। सबको उत्साहपूर्वक अपनी ओर टकटकी लगाये देखकर प्रभु बड़े ही मधुर स्वर से कहने लगे- मेरे गुरु के भी गुरु वैकुण्ठवासी भगवान माधवेन्द्रपुरी की कृष्ण-भक्ति अलौकिक थी वे अहर्निश श्रीकृष्ण-कीर्तन में ही लगे रहते थे, सोते-जागते वे सदा श्रीहरि के ही रुप का चिन्तन करते रहते। उनकी जिह्वा को भगवन्नाम का ऐसा चश्का लग गया था कि वह कभी ख़ाली नहीं रहती, सदा उन जगत्पति के मंगलमय मंजुल नामों का ही बखान करती रहती। उनकी इस उत्कट भक्ति के ही कारण भगवान को खीर की चोरी करने पड़ी। भगवान माधवेन्द्रपुरी एक बार व्रज की यात्रा करते-करते गिरिराज गोवर्धन पर्वत के समीप पहुँचे। वहाँ पर गिरि-कानन की कमनीय छटा को देखकर वे मन्त्रमुग्ध-से बन गये और वहीं गिरिवर के समीप विचरण करने लगे। एक दिन उन्होंने गोवर्धन के निकट जंगल में एक वृक्ष के नीचे निवास किया। पुरी महाराज की अयाचित वृत्ति थी। वे भोजन के लिये भी किसी से याचना नहीं करते थे। प्रारब्धवशात जो भी कुछ मिल जाता उसे ही सन्तोषपूर्वक पाकर कालयापन करते थे। उस दिन उन्हें दिन भर कुछ भी आहार नहीं मिला। शाम के समय वे उसी वृक्ष के नीचे बैठे भगवन्नामों का उच्चारण कर रहे थे कि उन्हें किसी के पैरों की आवाज सुनायी दी। वे चौंककर पीछे की ओर देखने लगे। उन्होंने क्या देखा कि एक काले रंग का ग्यारह-बारह वर्ष की अवस्था वाला बालक हाथ में दूध का पात्र लिये उनकी ओर आ रहा है। शरीर का रंग काला होने पर भी बालक के चेहरे पर एक अदभुत तेज प्रकाशित हो रहा था, उसके सभी अंग सुडौल-सुन्दर और चित्ताकर्षक थे। उसने बड़े ही कोमल स्वर में कुछ हंसते हुए कहा-‘महात्मा जी ! भूखे क्यों बैठे हो ? लो इस दूध को पीलो।’ पुरी ने पूछा- ‘तुम कौन हो और तुम्हें इस बात का कैसे पता चला कि मैं यहाँ जंगल में बैठा हूँ?’ बालक ने हंसते हुए कहा- ‘मैं जाति का ग्वाला हूँ, मेरा घर इसी झाड़ी के समीप के ग्राम में है। मेरी माता अभी जल भरने यहाँ आयी थी, उसी ने आपको यहाँ बैठे देखा था और घर जाकर उसी ने मुझसे दूध दे आने को कह दिया था। इसीलिये मैं जल्दी से गौ को दुहकर आपके लिये दूध ले आया हूँ। |