|
श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
177. श्री चैतन्य–शिक्षाष्टक
दुष्ट स्वभाव वाले पुरुष उसे खूब फलों से समृद्ध देखकर डाह करने लगते हैं और ईर्ष्यावश उसके ऊपर पत्थर फेंकते हैं, किन्तु वह उनके ऊपर तनिक भी रोष नहीं करता, उल्टे उसे पास यदि पके फल हुए तो सर्वप्रथम तो प्रहार करने वाले को पके ही फल देता है, यदि पके फल उस समय मौजूद न हुए तो कच्चे ही देकर अपने अपकारी के प्रति प्रेमभाव प्रदर्षित करता है। दुष्ट स्वभाव वाले उसी की छाया में बैठकर शान्ति लाभ करते हैं। पीछे से उसकी सीधी शाखाओं को काटने की इच्छा करते हैं। वह बिना किसी आपत्ति के अपने शरीर को कटाकर उनके कामों को पूर्ण करता है। उस गुरु से सहिष्णुता सीखनी चाहिये। मान तो मृगतृष्णा का जल है, इसलिये मान के पीछे जो पड़ा, वह प्यार से हिरण की भाँति सदा तड़फ-तड़फकर ही मरता है, मान का कहीं अन्त नहीं, ज्यों-ज्यों आगे को बढ़ते चलो त्यों ही त्यों वह बालुकामय जल और अधिक आगे बढ़ता चलेगा। इसलिये वैष्णव को मान की इच्छा कभी न करनी चाहिये, किन्तु दूसरों को सदा मान प्रदान करते रहना चाहिये। सम्मान रूपी सम्पत्ति की अनन्त खानि भगवान ने हमारे हृदय में दे रखी है। जिसके पास धन है और वह धन की आवश्यकता रखने वाले व्यक्ति को उसके माँगने पर नहीं देता, तो वह ‘कंजूस’ कहलाता है। इसलिये सम्मान रूपी धन को देने में किसी के साथ कंजूसी न करनी चाहिये। तुम परम उदार बनो, दोनों हाथों से सम्पत्ति को लुटाओ, जो तुमसे मान की इच्छा रखें, उन्हें तो मान देना ही चाहिये, किन्तु जो न भी मांगें उन्हें भी बस भर-भरकर देते रहो। इससे तुम्हारी उदारता से सर्वान्तरयामी प्रभु अत्यन्त प्रसन्न होंगे। सभी में उसी प्यारे प्रभु का रूप देखो। सभी को उनका ही विग्रह समझकर नम्रता पूर्वक प्रणाम करो। ऐसे बनकर ही इन सुमधुर नामों के संकीर्तन करने के अधिकारी बन सकते हो–
श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे !
हे नाथ ! नारायण ! वासुदेव !
(4)
न धनं न जनं न सुन्दरीं
कवितां वा जगदीश कामये।
मम जन्मनि जन्मनीश्वरे
भवताद्भक्तिरहैतुकी त्वयि।।
संसार में सब सुखों की खानि धन है। जिसके पास धन है, उसे किसी बात की कमी नहीं। धनी पुरुष के पास गुणी, पण्डित तथा भाँति-भाँति की कलाओं के कोविद आप से आप ही आ जाते हैं। धन से बढ़कर शक्तिशालिनी जन-सम्पत्ति है। जिसकी आज्ञा में दस आदमी हैं। जिसके कहने से अनेकों आदमी क्षणभर में रक्त बहा सकते हैं, वह अच्छे–अच्छे धनिकों की भी परवा नहीं करता। पैसा पास न होने पर भी अच्छे-अच्छे लखपति-करोड़पति उससे थर-थर कांपते हैं। उस जनशक्ति से भी बढ़कर आकर्षक सुन्दरी है।
|
|