श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी157. महात्मा हरिदास जी का गोलोकगमन
महाप्रभु ने सभी भक्तों को खू्ब आग्रह पूर्वक भोजन कराया। सभी ने प्रसाद ना लेने के अनन्तर हरिध्वनि की। तब प्रभु ऊपर को हाथ उठाकर कहने लगे- ‘हरिदास जी का जिसने संग किया, जिसने उनके दर्शन किये, उनके गड्ढे में बालू दी, उनका पादोदक पान किया, उनके विजयोत्सव में प्रसाद पाया, वह कृतार्थ हो गया। उसे श्रीकृष्ण प्रेम की प्राप्ति अवश्य हो सकेगी। वह अवश्य ही भगवत्कृपा का भाजन बन सकेगा।’ यह कहकर प्रभु ने जारो से हरिदास जी की जय बोली।’ ‘हरिदास जी की जय’ के विशाल घोष से आकाश मण्डल गूँजने लगा। हरि-हरि ध्वनि के साथ हरिदास जी का विजयोत्सव समाप्त हुआ। श्री क्षेत्र जगन्नाथपुरी में टोटा गोपीनाथ जी के रास्ते में समुद्र तीर पर अब भी हरिदास जी की सुन्दर समाधि बनी हुई है। वहाँ पर एक बहुत पुराना बकुल (मौलसिर) का वृक्ष है, उसे ‘सिद्ध बकुल’ कहते हैं। ऐसी प्रसिद्धि है कि हरिदास जी ने दातौन करके उसे गाड़ दिया था, उसी से यह वृक्ष हो गया। अब भी वहाँ प्रतिवर्ष अनन्त चतुर्दशी के दिवस हरिदास जी का विजयोत्सव मनाया जाता है। उन महामना हरिदास जी के चरणों में हम कोटि कोटि प्रणाम करते हुए उनके इस विजयोत्सव प्रसंग को समाप्त करते हैं। |