श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी104. राय रामानन्द द्वारा साध्य तत्व प्रकाश
इतना सुनते ही राय महाशय ने अपने कोकिलकूजित कमनीय कण्ठ से इस श्लोक को बड़े ही लय के साथ पढ़ने लगे- वाचा सूचितशर्वरीरतिकलाप्रागल्भया राधिकां बस, यही रास-विलास पराकाष्ठा है। प्रभु इसको सुनकर बड़े ही प्रसन्न हुए। प्रभु ने राय महाशय का जोर से आलिंगन किया और दोनों प्रेम में प्रमत्त होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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