श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी61. प्रेमोन्मत्त अवधूत का पादोदकपान
एक दिन ये श्रीवास पण्डित के घर के आंगन में खड़े-ही-खडे़ कुछ खा रहे थे, इतने में ही एक कौआ ठाकुर जी के घृत के दीपपात्र को उठा ले गया। इससे मालती देवी को बड़ा दु:ख हुआ। माता को दु:खी देखकर ये बालकों की भाँति कौए को टुकड़ा दिखाते हुए कहने लगे। बार-बार कौए को पुचकारते हुए गायन के स्वर में सिर हिला-हिलाकर कह रहे थे- सचमुच में इतनी बात सुनकर कौआ जल्दी से आकर उस पीतल के पात्र को इनके समीप डाल गया। माता को इससे बड़ी प्रसन्नता हुई और वह इनमें ईश्वरभाव का अनुभव करने लगी। तब आप बड़े जोरों से खिलखिलाकर हंसने लगे और ताली बजा-बजाकर कहने लगे- माता इनकी इस बाल-चपलता से बड़ी ही प्रसन्न हुईं। अब आप जल्दी से घर से बाहर निकले। बाजार में होकर पागलों की तरह दौड़ते जाते थे, न कुछ शरीर का होश है, न रास्ते की सुधि, किधर जा रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं, इसका भी कुछ पता नहीं है। रास्तें में भागते-भागते लंगोटी खुल गयी, उसे जल्दी से सिरपर लपेट लिया, अब नंगे-धड़ंगे, दिगम्बर शिव की भाँति ताण्डव-नृत्य करते जा रहे हैं। रास्ते में लड़के ताली पीटते हुए इनके पीछे दौड़ रहे हैं, किंतु किसी की कुछ परवा ही नहीं। जोरों से चौकड़ियां भर रहे हैं। इस प्रकार बिलकुल नग्नावस्था में आप प्रभु के घर पहुँचे। |