श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी55. भक्त हरिदास
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। इस महामन्त्र में ही सब सामर्थ्य विराजमान है। इसी का निरन्तर जप करती रहो। अब इस कुटिया में हम नहीं रहेंगे, तुम्ही इसमें रहो।’ उस वेश्या को ऐसा उपदेश करके महाभागवत हरिदास जी सीधे शान्तिपुर चले गये और वहाँ जाकर अद्वैताचार्य जी के समीप अध्ययन और श्रीकृष्ण का संकीर्तन में सदा संलग्न रहने लगे। इस वारवनिता ने भी हरिदास जी के आदेशानुसार अपना सर्वस्व दान करके अकिंचनों का-सा वेश धारण कर लिया। वह फटे-पुराने चिथड़ों को शरीर पर लपेटकर और भिक्षान्न से उदरनिर्वाह करके अपने गुरुदेव के चरणचिह्नों का अनुसरण करने लगी। थोड़े ही समय में उसकी भक्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी। बहुत-से लोग उसके दर्शन के लिये आने लगे। वह हरिदासी के नाम से सर्वत्र प्रसिद्ध हो गयी। लोग उसका बहुत अधिक आदर करने लगे। महापुरुषों ने सत्य ही कहा है कि महात्माओं का खोटी बुद्धि से किया हुआ सत्संग भी व्यर्थ नहीं जाता। सत्संग की महिमा ही ऐसी है। इधर रामचन्द्र खाँ ने अपने कुकृत्य का फल यहीं पर प्रत्यक्ष पा लिया। नियत समय पर बादशाह को पूरा लगान न देने के अपराध में उसे भारी दण्ड दिया गया। बादशाह के आदमियों ने उसके घर में आकर अखाद्य पदार्थों को खाया और उसे स्त्री-बच्चे सहित बाँधकर वे राजा के पास ले गये, उसे और भी भाँति-भाँति की यातनाएँ सहनी पड़ीं। सच है, जो जैसा करता है उसे उसका फल अवश्य ही मिलता है। |