विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 23-29
15. युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ
सहदेव को राजा ने आज्ञा दी कि चारों ओर दूत भेजकर सब राज्यों से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और प्रतिष्ठित शूद्रों को आमन्त्रित किया जाय। सबने यथा समय आकर युधिष्ठिर की दीक्षा के उत्सव में भाग लिया और युधिष्ठिर ने अनेक विप्र, भाई-बन्धु, मित्र, सचिव और अनेक स्थानों से समागत लोगों के साथ साक्षात शरीरधारी धर्म के समान यज्ञ-भूमि में प्रवेश किया। यज्ञ के उस आयतन में अनेक आवसथ शिल्पियों द्वारा बनाये गए थे। उनमें सब ऋतुओं के अनुकूल अन्न, शयनादि का प्रबन्ध था, साथ ही अनेक कथ-वार्त्ता और नट, नर्तकों के नाट्य कर्म की भी व्यवस्था थी। इस प्रकार राजसूय-यज्ञ में जहाँ एक ओर वैदिक कर्मकांड के अनुसार अग्नि होत्र और वेद-पाठ होता था वहाँ दूसरी ओर उसका रूप प्राचीन काल के समाज नामक उत्सवों-जैसा था। ‘दान दीजिए, भोजन कीजिए,’ यही ध्वनि वहाँ सुनाई पड़ती थी। युधिष्ठिर ने विशेष रूप से नकुल को हस्तिनापुर भेजकर भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र, विदुर, कृपाचार्य और अपने सब भाइयों को आमंत्रित किया। सब गुरुजन और दुर्योधन आदि भाई भी वहाँ पधारे। उनके साथ शकुनि, कर्ण, शल्य, जयद्रथ भी आए। और भी प्राग्ज्योतिष, पुण्ड्र, वंग, कलिंग, कुन्तल, अन्ध्र, द्रविड़, सिंहल, बाल्हीक, काश्मीर आदि अनेक जनपदों के राजा और राजपुत्र वहाँ आए। अपने पुत्र के साथ महाबली शिशुपाल भी युधिष्ठिर के यज्ञ में सम्मिलित हुआ। इसी प्रकार और भी मध्यदेश के राजा एवं अनेक वृष्णिवीर वहाँ आए, जिनका युधिष्ठिर ने उचित स्वागत-सत्कार किया। उन्होंने समय के अनुसार यह विनीत वचन कहा, “इस यज्ञ में आप सब कुछ मुझपर अनुग्रह करें। मैं और जितना मेरा धन है, वह सब आपका है। आप इच्छानुसार उससे प्रसन्न हों।” यह कहकर उसने खाने-पीने का प्रबन्ध दुःशासन को सौंपा। ब्राह्मणों की पूजा का अश्वत्थामा को, राजाओं के सत्कार का संजय को और सुवर्ण, रत्नादि के देखने एवं दक्षिणा देने का कार्य कृपाचार्य को सौंपा। भूल-चूक की देख-रेख (कृताकृत परिज्ञान) के लिए महामति भीष्म और द्रोण से प्रार्थना की। व्यय विदुर के हाथ में सौंपा और दुर्योधन को यह कार्य नियुक्त किया कि जो लोग भेंट लेकर आयें, उन्हें वह स्वीकार करे। धर्मराज युधिष्ठिर की सभा को देखने के लिए और उनके दर्शन के लिए अनेक लोग एकत्र हुए। हमारे लाये हुए रत्नों से कौरव्य राजा युधिष्ठिर का यज्ञ पूरा हो, इस प्रकार की होड़ से राजा लोगों ने युधिष्ठिर का कोष भर दिया। कौन्तेय महात्मा युधिष्ठिर का वह सदन अनेक आवसथों से सुशोभित हो उठा और स्वयं युधिष्ठिर उस दक्षिणावान यज्ञ से सुशोभित हुए। न केवल देवता, किन्तु ब्राह्मण और सब वर्णों की प्रजाएं उस यज्ञ समागम से तृप्त और प्रसन्न हुईं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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