विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 138-142
9. द्रौपदी-स्वयंवर
वारणावत के लाक्षागृह-दाह से बचकर भागे हुए पाण्डव घोर वन में शीघ्रता से आगे बढ़ने लगे। वे थककर वन में एक वृक्ष के नीचे सो गए। वहाँ हिडिम्ब नामक राक्षस मानुषगन्ध पाकर उस शाल वृक्ष के नीचे आया और उन्हें देखकर हिडिम्बा नाम की अपनी बहन से बोला, “आज बहुत दिन बाद मुझे मनचाहा भोजन मिला है। बहन, जा और देख, वन में वे कौन सो रहे हैं?” राक्षसी शीघ्र वहाँ आई और उसने वहाँ कुन्ती और पाण्डवों को सोते देखा। केवल भीमसेन जाग रहे थे। उन महाबाहु के शालस्कंधयुक्त स्वरूपवान शरीर को देखकर वह उन पर मोहित हो गई। सोचने लगी, “यदि मेरा भाई इन्हें खा लेगा तो उसे मुहूर्त भर की तृप्ति होगी, पर यदि मैं इस वीर पुरुष से विवाह कर लूं तो मुझे अनेक वर्षों तक सुख मिलेगा।” यह सोचकर वह सलज्ज भाव से भीमसेन के पास आई और कहा, “तुम्हारे स्वरूप को देखकर मैं तुम पर मोहित हुई हूँ और तुम्हें अपना पति बनाना चाहती हूँ। मैं नरभक्षक राक्षस से तुम्हारी रक्षा करूंगी।” हिडिम्बा को देर से गया हुआ जानकर उसका भाई हिडिम्ब स्वयं वहाँ आ पहुँचा। उसके आने से भयभीत होकर हिडिम्बा ने भीम से कहा, “मैं तुम सबको अपनी पीठ पर बैठाकर आकाश में ले जाऊंगी।” किन्तु भीम ने उत्तर दिया, “तुम भय मत करो, तुम्हारे देखते-देखते मैं इसे मार डालूंगा। मेरे बल को यह नहीं सह सकता।” हिडिम्ब अपनी बहन पर बहुत क्रोधित हुआ और अपशब्द कहने लगा। तब भीम ने उसे ललकारा और देर तक दोनों में घमासान युद्ध होता रहा। अन्त में भीमसेन ने उसे पछाड़ डाला और भुजाओं के बीच में दबाकर पशु की तरह मार डाला। शोर सुनकर माता कुन्ती और भाई जाग उठे। तब भीमसेन ने हिडिम्बा से विवाह किया और उससे घटोत्कच नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। उन दोनों को पीछे छोड़कर पाण्डव अन्त में एकचक्रानगरी में पहुँचे। वहाँ वे भिक्षा से जीविका चलाकर किसी ब्राह्मण के घर में रहने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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