विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 13
जब अर्जुन और कृष्ण नर-नारायण के रूप में अपने प्राचीन सम्बन्धों का स्मरण कर रहे थे, तब दुखियारी द्रौपदी शरणार्थिनी हो कृष्ण के पास आई। अपने लम्बे कथन में द्रौपदी ने पहले तो अर्जुन के स्वर में स्वर मिलाते हुए कृष्ण के उस स्वरूप का वर्णन किया, जहाँ मानव के दुःख-सुख का स्पर्श नहीं हैः “हे दुर्धर्ष, तुम विष्णु हो, तुम्हीं यज्ञ हो, तुम्हीं यष्टा और यष्टव्य हो। यह जामदग्न्य का मत है। असित-देवल तुम्हें ही सब भूतों के स्रष्टा प्रजापति कहते हैं। ऋषियों के अनुसार तुम सत्य और क्षमा हो। नारद तुम्हें ही सर्वेश्वर कहते हैं। तुमने सिर से द्युलोक को और पैरों से पृथ्वी को व्याप्त कर रखा है। तुम्हीं प्रभु, विभू और स्वयम्भू हो। सूर्य, चन्द्र, आकाश, नक्षत्र, लोक, लोकपाल सब तुममें प्रतिष्ठित हैं।” इसके अनन्तर द्रौपदी मानवी धरातल पर उतरकर अपने सिमटे हुए शोक को प्रकट करने लगी, “हे कृष्ण, तुम मुझे अपना समझते हो, इसलिए तुम्हें अपना दुखड़ा सुनाऊंगी। पाण्डवों की पत्नी, कृष्ण की सखी, धृष्टद्युम्न की बहन सभा में घसीटकर लाई गई-यह क्या हुआ? एक वस्त्र पहने हुए स्त्रीधर्मिणी मुझ दुखिया को राजसभा में देखकर धृतराष्ट्र के पापी पुत्र हंसे-कहो कृष्ण, यह क्या हुआ? पाण्डु के पांचों पुत्र, पांचाल क्षत्रिय और वृष्णि लोग क्या उस समय जीवित थे, जब कौरवों ने दासी भाव से मुझ पर दृष्टि डाली? हे कृष्ण, क्या यह सच है कि मैं भीष्म और धृतराष्ट्र की धर्मशीला पुत्रवधु हूं? युद्ध में भुजाएं फड़काने वाले उन महाबली पाण्डवों को मेरी ओर से धिक्कार है, जो क्लेश पाती हुई धर्मपत्नी को टुकुर-टुकुर देखते रहे! धिक्कार है, भीमसेन के बल को और धनुर्धर अर्जुन के पौरुष को, जिन्होंने नीचों से मुझे अपमानित होते देखकर भी चूं न की। सदा-सदा ये यही धर्मपथ रहा है कि जो अल्पबल हैं, वे भी भार्या की रक्षा करते हैं। मैं पाण्डवों की शरण में गई, किन्तु उन्होंने मेरी रक्षा न की! क्या उन पुत्रों के लिए भी, जो मेरी कोख से जन्मे हैं, मैं उन पतियों के द्वारा रक्षा के योग्य न थी? हे कृष्ण, इतना सब करके भी यदि दुर्योधन मुहूर्त भर जीवित रहे तो धिक्कार है भीमसेन के बल को और धिक्कार है अर्जुन के गांडीव को! इस दुर्योधन ने हमारे साथ-साथ करतूतें नहीं कीं! महाकुल में जन्म लेकर मैं पाण्डवों की स्त्री हुई और पाण्डु की पुत्रवधु, फिर भी कृष्ण, मेरे केश खींचे गए और ये पांचों पति बैठे हुए देखते रहे!” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज