विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 89-90
6. पौरव-राज-वंशावली
महात्मा ययाति के वंशधर पुत्र पुरु के नाम से कुरु पाण्डवों का वंश पौरव कहलाया। ययाति का चरित सुनकर जनमेजय ने यह जिज्ञासा की- “भगवन, पुरु के वंश में जो प्रतापी वंशकर्त्ता नृपति हुए, उनके पराक्रमशाली चरित मैं सुनना चाहता हूँ। इस वंश में निर्वीर्य शीलहीन कोई राजा नहीं सुना जाता। विज्ञानशाली उन यशोधन राजाओं के जो प्रथित चरित्र हों उनका कृपया बखान करें।” यह सुनकर वैशम्पायन ने कहा, “पुरु के वंशधर वीर पुरुष इन्द्र के सदृश तेजस्वी हुए। उन लक्षणवान राजाओं के विषय में मैं तुमसे कहता हूँ।” इस भूमिका के साथ महाभारतकार ने पौरववंश के राजाओं की दो सूचियां दी हैं। एक 89वें अध्याय में और दूसरी 90वें अध्याय में। इनमें से पहली सूची पुराणों के साथ अधिक मिलती है। प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक अनुश्रुति की छानबीन करने वाले पार्जिटर महोदय ने पौरव-राजवंशावली पर विस्तार से विचार करते हुए इस सामग्री को विश्वसनीय ठहराया है। पौरव राजाओं की नामावली आठ पुराणों में पाई गई है- वायु[1]; ब्रह्मांड[2]; हरिवंश[3]; मत्स्य[4]; विष्णु[5]; अग्नि[6]; गरुड़[7]; और भागवत।[8] इस राजावली के मोटे तौर पर तीन भाग किये जा सकते हैं- प्रथम भाग पुरु से अजमीढ़ तक; दूसरा, अजमीढ़ से कुरु तक और तीसरा, कुरु से पाण्डवों तक। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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