विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 150
30. हिमालय के पुण्य प्रदेश में
कनखल में गंगा-द्वार तक पहुँचे हुए पाण्डवों के सामने हिमालय का वह पुण्य प्रदेश विस्तृत था, जो बदरी-केदारखंड और कैलास-मानस-खंड के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रदेश के भूगोल का कुछ परिचय ऊपर आ चुका है, फिर भी तीर्थ-यात्रा प्रसंग में पुनः इसका वर्णन किया गया है। अलकनन्दा के मार्ग से गन्धमादन पर्वत के बदरी-केदार तक और कालीकर्णाली के मार्ग से कैलास-मानसरोवर तक के भूगोल का अच्छा परिचय प्राचीन काल के भारतीयों को हो गया था। इस प्रदेश में कुणिन्द विषय का उल्लेख भौगोलिक महत्त्व का है।[1] देहरादून जिले में यमुना की पर्वतीय द्रोणी कुणिन्दों का प्रदेश थी, जहाँ कुणिन्दगण के ऐतिहासिक सिक्के आज तक पाये जाते हैं। कुणिन्दों के उत्तर-पूरब में तंगण प्रदेश था, और पश्चिम में रामपुर-बुशहर तक फैला हुआ किरात देश था। अतएव इस प्रदेश के लिए ‘किराततंगणाकीर्ण’ एवं ‘कुणिन्दशतसंकुल’[2] ये दो विशेषण ठीक प्रयुक्त हुए हैं। महाभारत में इस लम्बे चौड़े भूभाग को ‘महद् विषय’ कहा है। कुणिन्दाधिपति सुबाहु ने अपनी सीमा पर पाण्डवों की आवभगत की। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज