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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 1-6
महाभारत के तीसरे पर्व- आरण्यक पर्व या वन पर्व में पाण्डवों के वनवास की कथा है। यद्यपि इस बृहत् पर्व में लगभग 300 अध्याय और 12,000 श्लोक हैं, किन्तु कथा-प्रवाह की दृष्टि से इसकी सामग्री परिमित है। इस कमी की पूर्ति इस पर्व के अनेक उपाख्यान, चरित, नीति और धर्म के प्रसंगों एवं तीर्थ यात्रा-सम्बन्धी वर्णनों से भली-भाँति हो जाती है। ऐसे स्थल इस पर्व में कटहल में कोयों की भाँति भरे हुए हैं, मानो बारह वर्ष के लम्बे वनवास-काल को संतुलित करने या समय काटने के लिए वे प्रसंग यहाँ आवश्यक समझकर रखे गए हों। वनवास में पाण्डवों का दुःख हलका करने के लिए यहाँ नलोपाख्यान की सुन्दर कथा है, जो उत्कृष्ट साहित्यिक रस से युक्त है और अब तो संसार की विविध भाषाओं में अनुवाद के रूप में विश्व-साहित्य का अंग बन चुकी है। ऋष्यश्रृंग उपाख्यान, रामायण का रामोपाख्यान और भारत के साहित्यिक जगत की अमर कृति सावित्री-सत्यवान उपाख्यान भी इसी पर्व में है। इस पर्व के अन्य विषय ये हैं- पाण्डव-प्रव्राजन, पौराभिगमन, शौनक-वाक्य, आदित्य के 108 नामों का स्तोत्र, विदुर-विवासन, धृतराष्ट्र-संताप, सुरभि-इन्द्र-संवाद, शाल्व-वध-कथा, द्वैतवन-प्रवेश, द्रौपदी-वाक्य, कार्तवीर्य-वध-उपाख्यान, पुलस्त्य-तीर्थयात्रा, लोमशागमन, मान्धाता-उपाख्यान, यावक्रीत-उपाख्यान, गन्धमादन-प्रवेश, अर्जुनाभिगमन, निवातकवचवध, आजगर-पर्व, कृष्ण-पाण्डव-समागम, श्येनकपोतीय, मत्स्योपाख्यान, किरात-युद्ध, नलोपाख्यान, रामोपाख्यान, ऋष्यश्रृंग-उपाख्यान, च्यवन-सुकन्या-उपाख्यान, अष्टावक्रीय उपाख्यान, जटासुर-वध, धुन्धुमारोपाख्यान, सरस्वती-तार्क्ष्यसंवाद, मैत्रेय-धृतराष्ट्र-भेंट, किर्मीर-वध, शास्त्र-प्राप्ति, हनुमद्भीम-समागम, मार्कण्डेय-समास्या, ब्राह्मण-माहात्मय, सावित्री-उपाख्यान, कुण्डलाहरण, मणिमद्-वध, आरणेय, यक्षप्रश्न, पुष्पाभिहरण, यक्षप्रश्न, पुष्पाभिहरण, द्रौपदी-प्रमाथ, मण्डूकोपाख्यान, इन्द्रकीलाभिगमन, लोमशतीर्थयात्रा-प्रस्थान इन उपाख्यानों के हृदयग्राही अंशों को अब हम क्रमश: देखेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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