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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
13. अनुशासन पर्व
अध्याय : 1-146
अनुशासनपर्व का दूसरा महत्त्वपूर्ण अंग शिव सहस्रनाम है। वस्तुतः शिव की महिमा के विषय में बहुत कम सामग्री आ पाई थी। उसकी पूर्ति शिव सहस्रनाम द्वारा की गई है।[1] इसमें शिव और पार्वती शिव सहस्रनाम द्वारा की गई है। इसमें शिव और पार्वती ने श्रीकृष्ण को पुत्र प्राप्ति के लिए महावरदान दिया। कृष्ण ने पुत्र के लिए हिमालय पर तपश्चर्या की। इससे शिव-पार्वती प्रसन्न हुए। तब उपमन्यु ने शिव की महिमा वर्णन किया। उसी प्रसंग में तण्डी ने शिव सहस्रनाम का पाठ किया। वस्तुतः संस्कृत साहित्य में अभी तक हमें तीन शिव सहस्रनाम प्राप्त हुए हैं। एक यहाँ है जो तण्डी कृत है, दूसरा वामन पुराण में है जिसे वेनकृत कहा गया है। तीन लिंग पुराण में हैं, जिसमें एक कृष्णकृत है, दूसरा दक्षकृत और तीसरा तण्डीकृत है। इस प्रकार इन शिव सहस्रनामों की संख्या यद्यपि देखने में चार जान पड़ती है, पर वह वस्तुतः तीन ही हैं क्योंकि जिसे वामन पुराण में वेनकृत कहा गया है उसे ही लिंग पुराण में दक्षकृत कहा है। शिव सहस्रनाम-लगभग 125 श्लोकों में यह सहस्रनाम है, जैसे विष्णु सहस्रनाम है। शैव और वैष्णव दोनों धर्मों में जो सान्निध्य था और उनके आचार्यों में जो प्रीति और समन्वय का भाव था उसका ठोस प्रकरण पुराणों में मिलता है। उसे देखते हुए शिव सहस्रनाम और विष्णु सहस्रनाम दोनों एक सदृश ही लोकप्रिय थे। ऊपर हमने विष्णु सहस्रनाम की रचना के विषय में जो कुछ लिखा है, वह शिव सहस्रनाम की रचना के विषय में भी अक्षरतः घटित होता है। इसके लेखने ने भी वैदिक और लौकिक साहित्य से सहस्रों नामों की सूची एकत्र की जिसे श्लोकबद्ध करने से सहस्रनाम स्तोत्र की रचना हुई। कुछ नाम और विशेषण जो केवल शिव के लिए प्रयुक्त हैं, वे इस प्रकार हैंः श्मशानवासी, महाहनु, हयगर्दभि, नीलकण्ठ, दिग्वासस्, कमण्डलुधर, कपालवान्, उष्णीशी, श्रृगालरूप, मुण्ड, ऊर्ध्वरेता, ऊर्ध्वलिंग, ऊर्ध्वलिंग, ऊर्ध्वशायी, त्रिजटी, चीरवास, गजहा, सिंहशार्दूलरूप, आद्रचर्माम्बरावृत, कालयोगी, महानन्द, चतुष्पक्ष, निशाचर, प्रेतचारी, भूतचारी, नर्तक, यज्ञहा, दक्षयज्ञापहारी, वडवामुख कालकंटक, भेषज, सर्पचिरनिवासिन्, कालसिंह, मधुरमधुकलोचन, नन्दीश्वर, महालिंग, पशुपति, वृषण, मृगालय, लम्बितोष्ठ, भस्मशायी, भस्मगोप्ता, परश्वधायुध, सुरारिहा, अजैकपाद, कापाली, कैलासगिरिवासी, कूलहारी, कूलकर्ता, गान्धार, करस्थाली, कुण्डी, जाह्नवीधृत, उमाधव, उमाकान्त, गोवृषेश्वर, हस्तीश्वर, ललाटाक्ष, आदि। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (अनुशासनपर्व अ. 19)
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