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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
17. महाप्रस्थानिक पर्व
अध्याय : 1-3
इस पर्व में वृष्णि वंशियों का श्राद्ध करके प्रजाजनों की अनुमति ले द्रौपदी सहित पाण्डवों का प्रस्थान वर्णित है। युधिष्ठिर ने अब राज्य छोड़कर हिमालय में जाने का विचार किया। उन्होंने राज्य की देखभाल का काम युयुत्सु को सौंपा और सिंहासन पर परीक्षित का अभिषेक किया तथा सुभद्रा से कहा, “यह तुम्हारे पुत्र का पुत्र परीक्षित कुरुदेश तथा कौरवों का राजा होगा और यादवों में जो लोग बच गये हैं उनका राजा श्रीकृष्ण-पौत्र वज्र को बनाया गया है। परीक्षित हस्तिनापुर में राज्य करेंगे और यदुवंशी वज्र इन्द्रप्रस्थ में। तुम्हें राजा व्रज की भी रक्षा करनी चाहिये।” पाण्डवों ने अपनी हिमालय यात्रा प्रारम्भ की। मार्ग के कष्टों को न सहकर द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीमसेन धराशायी हो गये। इसका कारण पूछने पर युधिष्ठिर ने कहा, “द्रौपदी सब भाइयों में अर्जुन को अधिक चाहती थीं, इसलियए उसका मन योग से विचलित हो गया। सहदेव अपने समान किसी को बुद्धिमान और विद्वान नहीं समझते थे इस कारण इस दशा को भुगत रहे हैं। नकुल के विषय में यह बात है कि वह सोचता था कि ‘एकमात्र’ मैं ही रूपवान हूँ’ इस कारण नीचे गिरा।” अर्जुन के विषय में युधिष्ठिर ने कहा कि वह सोचता था कि ‘मैं एक ही दिन में शत्रुओं को भस्म कर डालूँगा’, किन्तु ऐसा किया नहीं, इसी से आज इन्हें धराशायी होना पड़ा। अन्त में भीमसेन गिर पड़े तो उनसे युधिष्ठिर ने कहा, “तुम बहुत खाते थे और दूसरों को कुछ भी न समझ कर अपने बल की डींग हांका करते थे, इसी से तुम्हें धराशायी होना पड़ा है।” युधिष्ठिर को स्वर्ग में ले जाने के लिए इन्द्र का रथ आया। उन्होंने दो शर्तें कहीं। पहली यह कि मेरे साथ जो कुत्ता है, वह भी स्वर्ग जायगा। वह कुत्ता धर्म का रूप था। शर्त दूसरी यह कि मेरे भाई मार्ग में गिरे पड़े हैं, वे भी मेरे साथ चलें, इसकी व्यवस्था कीजिये, क्योंकि मैं भाइयों के बिना स्वर्ग में नहीं जाना चाहता। राजकुमारी द्रौपदी सुकुमारी है, वह भी सुख पाने के योग्य है। वह हम लोगों के साथ चले, इसकी अनुमति दीजिए। देवराज इन्द्र ने उत्तर दिया, “युधिष्ठिर, तुम्हारे सब भाई और द्रौपदी तुमसे पहले ही स्वर्ग में पहुँच गये हैं। वे सब तुम्हें वहाँ मिलेंगे।” दूसरी शर्त कुत्ते के स्वर्ग जाने की थी, जिस पर प्रसन्न होकर धर्मराज ने कुत्ते का रूप त्याग कर कहा, “हे युधिष्ठिर, मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।” स्वर्ग में सब ऋषि और देवों ने उनका स्वागत किया। मानव सदेह स्वर्ग जा सकता है या नहीं-इसका तथ्यात्मक पक्ष न लेकर यह अवश्य माना जा सकता है कि इस विषय में जो भारतीय आदर्श था उसके प्रतिनिधि युधिष्ठिर थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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