विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
3. आरण्यक पर्व
अध्याय : 277-283
38. सावित्री-उपाख्यान
जैसा श्री सुकथनकर ने लिखा है, महाभारतकार का यह असीम अनुग्रह मानना चाहिए कि उन्होंने नल-उपाख्यान और सावित्री-उपाख्यान इन दो तरल साहित्यिक अंशों को अपने महान ग्रन्थ में स्थान देने के लिए मूल कथा के प्रवाह को कुछ समय के लिए रोक लिया, नहीं तो ये दोनों विशिष्ट कृतियां आज न जाने कहाँ होतीं। नल-उपाख्यान जैसी साहित्य की सरल और वेगवती रचना विश्व-साहित्य में कम ही हैं और सावित्री उपाख्यान तो भारत के घर-घर की वस्तु है। लम्बे रामोपाख्यान से युधिष्ठिर का चाहे जो अनुरंजन हुआ हो, किन्तु द्रौपदी के मन की सान्त्वना के लिए अभीष्ट सामग्री मानो अभी तक नहीं मिल पाई थी। कुशल कथाकार ने इस स्थिति को पहचानकर ही सावित्री की कथा का यहाँ उपयुक्त सन्निवेश किया है। युधिष्ठिर ने पूछा, ‘‘मुझे अपना या इन भाइयों का भी उतना सोच नहीं है, जितना द्रौपदी का। जुए के बाद के दलदल से द्रौपदी ने ही हमें उबारा। हे महामुनि, क्या आपने ऐसी कोई पतिव्रता स्त्री देखी या सुनी है जैसी द्रौपदी है?’’ मार्कण्डेय ने कहा, ‘‘कुलीन स्त्रियों के महाभाग्य की सीमा नहीं है। राजकन्या सावित्री का वृत्तान्त भी ऐसा ही है। मद्र देश में अश्वपति नामक राजा था। उसके संतान न थी। तब उसने लक्ष होम से सावित्री की उपासना की। अठारह वर्ष उसने केवल तीसरे दिन भोजन किया। तब सावित्री ने प्रकट होकर कहा, ‘‘हे मद्रराज, वर मांगो। मैं तुम्हारे ब्रह्मचर्य, दम और नियम से प्रसन्न हूँ।’’ राजा ने कहा, ‘‘यदि आप प्रसन्न हैं तो वंश चलाने वाले मेरे बहुत-से पुत्र हों।’’ सावित्री ने कहा, ‘‘तुम्हारी इस इच्छा को जानकर मैंने पहले ही ब्रह्मा जी से पुत्र के लिए कहा था। उनकी कृपा हुई है कि एक तेजस्विनी कन्या तुम्हारे यहाँ जन्म लेगी। तुम उत्तर में अब और कुछ न कहना।’’ देवी सावित्री के अन्तर्धान हो जाने पर राजा अपने घर लौट आया। कुछ समय बीतने पर उसकी ज्येष्ठ रानी ने, जो मालव जनपद की राजकुमारी थी, गर्भ धारण किया। समय पर कन्या का जन्म हुआ और पिता ने उसका नाम सावित्री ही रखा। जब वह कन्या यौवनवती हुई तो उसके ज्वलंत तेज के कारण किसी ने उसका वरण न किया। किसी पर्व के दिन वह अग्निहोत्र के बाद पिता के समीप आई। उसे देखकर राजा ने दुःखी होकर कहा, ‘‘हे पुत्री, यह तुम्हारी प्रदान का उचित काल है, पर कोई तुम्हें नहीं वरता। अतएव तुम अपने अनुरूप पति स्वयं ढूंढ लो। तुम जिसे चाहो, मैं विचारपूर्वक उसे तुम्हें प्रदान करूंगा।’’ यह कहकर राजा ने वृद्ध मंत्रियों को उसके साथ कर दिया। वह रथ पर बैठकर राजर्षियों के तपोवनों में और तीर्थों में गई। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज