विषय सूची
भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
7. द्रोण पर्व
अध्याय : 52-60
बीस अध्यायों में यह महाभारत का प्रसिद्ध उप पर्व है। जब दुर्योधन ने आचार्य द्रोण को लड़ाई को कुछ ढील देने का उलाहना दिया तो द्रोणाचार्य ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर युद्ध करने के लिए फाड़ बांधा एवं चक्रव्यूह की रचना की। युधिष्ठिर के रोकने पर भी अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को तोड़ने की प्रतिज्ञा कर ली और वह कौरवों की चतुरंगिणी सेना का वध करता हुआ चक्रव्यूह की ओर बढ़ा। उसका पराक्रम देखकर द्रोणाचार्य भी चकित हो गये। दुःशासन और कर्ण भी उसका मार्ग नहीं रोक सके, यहाँ तक कि अभिमन्यु ने कर्ण के भाई का भी वध कर दिया। अभिमन्यु के साथ जो पाण्डव थे, उन्हें जयद्रथ ने रोक दिया और व्यूहद्वार की रक्षा करने लगा किन्तु उसे भी हटाकर अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस गया। वहाँ उसने अनेक योद्धाओं के साथ युद्ध किया। दुर्योधन भी उसके सामने नहीं ठहर सका और उसका पुत्र लक्ष्मण भी अभिमन्यु द्वारा मारा गया। तब छः महारथियों ने उस अकेले वीर को घेर लिया। अभिमन्यु फिर भी डरा या हटा नहीं और अपने विचित्र क्षात्र तेज से अकेला उन छहों से युद्ध करता हुआ खेत रहा। इस प्रकार युद्ध के तेरहवें दिन पाण्डव-पक्ष का एक अद्भुत वीर काम आ गया। अभिमन्यु का वध पाण्डवों के लिए साधारण घटना न थी। जैसे ही युधिष्ठिर ने यह समाचार सुना, वे अत्यन्त विलाप करने लगे। इसके बाद ही महाभारत के लोक प्रचलित संस्करण में व्यास जी ने आकर युधिष्ठिर को सान्त्वना दी और मृत्यु की उत्पत्ति का वर्णन किया और फिर कहा कि उसने तप के द्वारा ब्रह्मा जी से समस्त प्रजा के संहार का वरदान प्राप्त कर लिया है। उसके बाद राजा संजय की कथा कही, जिसका सुवर्ण इष्ठीवी नामक पुत्र, जो उसे अत्यन्त प्रिय था, मृत्यु के संहार से नहीं बच सका। फिर उन्होंने सुभोत्र, कौरव, शिव, राम, भगीरथ, दिलीप, मान्धाता, ययाति, अम्बरीष, शशविन्द, गय, रन्तिदेव, भरत, पृथु और परशुराम इन सोलह राजाओं का चरित्र सुनाया, जो महाप्रतापी चक्रवर्ती होते हुए भी मृत्यु से नहीं बच सके। यह प्रकरण षोडश राजकीय कहलाता है और यहाँ प्रक्षिप्त है। इसकी पुनरावृत्ति शान्ति पर्व में आई है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्र.स. | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज