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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
2. सभा पर्व
अध्याय : 5
11. देवर्षि नारद का उपदेश
आदि-पर्व के अंत में कहा जा चुका है कि अर्जुन ने मय नामक असुर को खांडव-दाह के अवसर पर अभय-दान दिया था। उस उपकार से कृतकृत्य होकर मय ने कृष्ण के समक्ष अर्जुन से विनयपूर्वक कहा, “हे कौन्तेय, आपने दहकते हुए क्रुद्ध काले पावक से मेरे प्राणों की रक्षा की। इसलिए मैं आपका क्या प्रत्युपकार करूं?” अर्जुन ने कहा, “हे महान असुर, तुम अपना कर्तव्य कर चुके, अब कल्याणभाव से गमन करो। हमारे ऊपर प्रीति बनाये रखना।” अर्जुन ने उत्तर दिया, “हे दानव, तुम मानते हो कि मैंने प्राणों के संकट से तुम्हें बचाया है, उसका कोई प्रत्युपकार मैं नहीं ले सकता; किन्तु तुम्हारा संकल्प भी व्यर्थ करना मैं नहीं चाहता। अतएव कृष्ण के लिए कुछ करो। उसी से मेरा उपकार हो जायेगा।” यह सुनकर मय ने कृष्ण से निवेदन किया। कुछ सोचकर कृष्ण ने कहा, “हे दितिपुत्र, तुम युधिष्ठिर के लिए एक सभा का निर्माण करो, जैसा तुम ठीक समझो, जिसे देखकर मनुष्यों को विस्मय हो और जिसकी अनुकृति कोई न बना सके। हे मय, ऐसी सभा बनाओ, जिसमें देवताओं के, असुरों के और मनुष्यों के अभिप्राय और अलंकरण विरचित हों।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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