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भारत सावित्री -वासुदेवशरण अग्रवाल
1. आदि पर्व
अध्याय : 70-88
ययाति का नियतिवाद
इसी प्रकार औशीनर शिबि को भी उत्तर देते हुए ययाति ने कहा, “हे शिबि, तुम्हारे दान का मैं अभिनन्दन नहीं कर सकता, क्योंकि दूसरे के दिये हुए लोक में मैं सुख नहीं मान सकता। मेरे लिए तो वही लोक है, जिसके लिए मैंने कर्म किया है।” इस प्रकार कर्म की महिमा और प्रतिष्ठा एवं मानवोचित आत्म-सम्मान और जीवन में सत्य की दृढ़ निष्ठा-यही ययाति के उपदेश का सार है। अन्त में ययाति ने अपने जीवन का गुह्य अर्थ प्रकाशित करते हुए इतना और कहा, “मेरा द्युलोक और मेरी पृथ्वी सत्य के बल पर टिकी है। सत्य से ही मनुष्यों में अग्नि प्रज्वलित होती है। मैंने कभी मिथ्या वचन नहीं कहा। सज्जन लोग सत्य की ही पूजा करते हैं। सब देवता, मुनि और मनुष्य सत्य से ही पूजनीय बनते हैं, ऐसी मेरी मान्यता हैः
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ आदि. 88।24
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