श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी118. श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा
तीसरी मण्डली के प्रधान गायक थे गन्धर्वावतार श्रीमुकुन्ददत्त पण्डित। उनके सहायक थे वासुदेव, गोपीनाथ, मुरारी, गुप्त, श्रीकान्त और बल्लभसेन। इस मण्डली में महामहिम महात्मा हरिदास जी प्रधान नृत्यकारी थे। वे अपनी छोटी सी दाढ़ी को हिलाते हुए कूद कूदकर मनोहर नृत्य कर रहे थे। उनका गोल गोल स्थूल शरीर नृत्य में गेंद की भाँति उछल रहा था। वे सिर हिलाकर ‘हरि हरि’ कहते जाते थे। चौथी मण्डली के प्रधान गायक थे श्रीगोविन्द घोष हरिदास, विष्णुदास, दाघव, माधव और वासुदेव उनके सहायक थे। इस मण्डली को नृत्य से टेढ़ी बनाने वाले श्रीवक्रेश्वर पण्डित थे। इनका नृत्य तो अपूर्व ही होता था। ये नृत्य करते करते जमीन में लोट पोट हो जाते। इस प्रकार चार मण्डलियों का तो महाप्रभु ने उसी समय से संगठन किया। तीन मण्डलियाँ पहले से ही बनी हुई थीं। एक तो कुलीन ग्राम की मण्डली थी, जिसके प्रधान गायक थे रामानन्द जी और सत्यराव जी के सहित नृत्य भी करते थे। उनके सहायक कुलीन ग्रामवासी सभी भक्त थे। दूसरी शान्तिपुर की एक मण्डली थी, जिसके प्रधान थे श्री अद्वैताचार्य के स्वनामधन्य पुत्र श्रीअच्युतानन्द जी। वे ही उसमें नृत्यकारी भी थे और शान्तिपुर के सभी भक्त उनके सहायक थे। तीसरे सम्प्रदाय के प्रधान गायक और नर्तक थे श्रीनरहरि और रघुनन्दन। खण्डवासी सभी उनके अनुगत थे। इस प्रकार सात सम्प्रदायों का सम्मिलित संकीर्तन हो रहा था। चार मण्डलियां तो भगवान के रथ के आगे-आगे संकीर्तन कर रही थीं। एक दायीं ओर, एक बायीं ओर और एक रथ के पीछे पीछे अपनी तुमुल ध्वनि से रथ को आगे बढ़ाने में सहायक हो रही थी। सातों सम्प्रदायों में साथ ही चौदह ढोल या मादल बजने लगे। असंख्यों मँजीरों की मीठी मीठी ध्वनि उन ढोल-करतालों की ध्वनि में मिल-मिलकर एक प्रकार का विचित्र रस पैदा करने लगी। ढोल बजाने वाले भक्त ढोलों को बजाते-बजाते दुहरे जो जाते थे। उनके पैर पृथ्वी पर टिके रहते और ढोलों को बजाते बजाते पीछे की ओर झुक जाते। नृत्य करने वाले भक्त उछल उछलकर, कूद कूदकर, भावों को दिखा-दिखाकर भाँति-भाँति से नृत्य करने लगे। महाप्रभु सभी मण्डलियों में नृत्य करते। वे-बात की-बात में एक मण्डली से दूसरी मण्डली में आ जाते और वहाँ नृत्य करने लगते। वे किस समय दूसरी मण्डली में जाकर नृत्य करने लगे, इसका किसी को भी पता नहीं होता। सभी समझते महाप्रभु हमारी ही मण्डली में नृत्य कर रहे हैं। यात्रीगण आश्चर्य के सहित प्रभु के नृत्य को देखते। जो भी देखता वही देखता-का-देखता ही रह जाता। महाप्रभु की ओर से नेत्र हटाने को किसी का जी ही नहीं चाहता। मनुष्यों की तो बात ही क्या, साक्षात जगन्नाथ जी भी प्रभु के नृत्य को देखकर चकित हो गये और वे रथ को खड़ा करके प्रभु की नृत्यकारी छबि को निहारने लगे। मानो वे प्रभु के नृत्य से आश्चर्यचकित होकर चलना भूल ही गये हों। |