श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी118. श्री जगन्नाथ जी की रथ यात्रा
महाप्रभु रथ के आगे आगे नृत्य करते हुए चल रहे थे। रथ चलने से पूर्व उन्होंने अपने हाथों से सभी भक्तों को मालाएँ पहनायीं तथा उनके मस्तकों पर चन्दन लगाया। इसके अनन्तर प्रभु ने संकीर्तन मण्डलियों को सात भागों में बाँट दिया। पहली मण्डली के प्रधान गायक महाप्रभु के दूसरे स्वरूप स्वनामध्य श्रीस्वरूपदामोदर जी थे, उनके दामोदर (दूसरे), नारायण, गोविन्ददत्त, राघव पण्डित और गोविन्दनन्द ये पांच सहायक प्रभु ने बनाये। उस मण्डली के मुख्य नृत्यकारी महामहिम श्रीअद्वैताचार्य थे। बूढ़े होने पर संकीर्तन के नृत्य में वे अच्छे अच्छे भक्तों से बहुत अधिक बढ़ जाते। उनका नृत्य बड़ा ही मधुर होता और वे अपने श्वेत बालों को हिलाते हुए मण्डली के आगे आगे श्रीशंकर जी का-सा ताण्डव-नृत्य करते जाते। दूसरी मण्डली के प्रधान गायक थे श्रीवास पण्डित। उनका शरीर स्थूल था, चेहरे पर से रोब टपकता था और वाणी में गम्भीरता तथा सरसता थी। वे हाथ में मंजीरा लिये हुए सिंह के समान खड़े थे। महाप्रभु ने उनके गंगादास, हरिदास (दूसरे), श्रीमान पण्डित शुभानन्द और श्रीराम पण्डित ये पांच सहायक बनाये। उस मण्डली के प्रधान नर्तक थे श्रीपाद नित्यानन्द जी। अवधूत नित्यानन्द जी अपने लम्बे इकहरे शरीर से नृत्य करते हुए बड़े ही भले मालूम पड़ते थे। |