श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी85. शान्तिपुर में अद्वैताचार्य के घर
नित्यानन्द जी के मुख से यह बात सुनकर कि ‘प्रभु इस समय फुलिया में हैं, हरिदास के आश्रम होंगे और वहाँ से शान्तिपुर जायेंगे’ बस, इस बात को सुनते ही लोग फुलिया की ओर दौड़ने लगे। कोई तो नाव पर पार होने लगे। कोई अपनी डोंगी को आप ही खेकर ले जाने लगे। कोई घडो़ के द्वारा ही गंगा जी को पार करने लगे। बहुत-से उतावले भक्तों ने तो नाव, डोंगी तथा घड़ों की भी परवा नहीं की। वे वैसे ही गंगा जी में कूद पड़े और हाथों से तैरकर ही उस पार पहुँच गये। हजारों आदमी बात-की-बात में गंगा जी को पार करके फुलिया ग्राम में पहुँच गये। प्रेम में उन्मत्त हुए पुरुष जेारों से ‘हरि बोल’, ‘हरि बोल’ की गगनभेदी ध्वनि करने लगे। उस महान कोलाहल को सुनकर प्रभु आश्रम में से बाहर निकल आये। संन्यासी-वेषधारी प्रभु के दर्शनों से वह प्रेम में उन्मत्त हुई अपार जनता जेारों से हरिध्वनि करने लगी। सभी के नेत्रों से आंसुओं की धाराएँ बह रही थीं। कोई-कोई तो प्रभु के मुँडे़ हुए सिर को और उनके गेरुए रंग के वस्त्रों को देखकर जोरों से ‘हा प्रभु! हा हरि ‘कहकर रुदन करने लगे। प्रभु ने सभी को कृपा की दृष्टि से देखा और सभी को लौट जाने के लिये कहकर आप शान्तिपुरी की ओर चलने लगे। बहुत-से भक्त उनके साथ-ही-साथ शान्तिपुर को चले। कुछ लौटकर नवद्वीप आ गये। |