श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी76. भक्तवृन्द और गौरहरि
कोई-कोई पश्चात्ताप करता हुआ कहता- ‘हम अब उन घुँघराले काले-काले कन्धों तक लटकने वाले बालों में सुगन्धित तैल न मल सकेंगे क्या? क्या अब हमारे पुण्यों का अंत हो गया? क्या अब नवद्वीप का सौभाग्य-सूर्य नष्ट होना चाहता है? क्या नदियानागर अपनी इस लीला-भूमि का परित्याग करके किसी अन्य सौभाग्यशाली प्रदेश को पावन बनावेंगे ? क्या अब नवद्वीप पर क्रुर ग्रहों की वक्रदृष्टि पड़ गयी? क्या अब भक्तों का एकमात्र प्रेमदाता हम सबको विलखता हुआ ही छोड़कर चला जायगा? क्या हम सब अनाथों की तरह तड़प-तड़पकर अपने जीवन के शेष दिनों को व्यतीत करेंगे? क्या सचमुच में हम लोग जाग्रत-अवस्था में ये बातें सुन रहे हैं या हमारा यह स्वप्न का भ्रम ही है? मालूम तो स्वप्न-सा ही पड़ता है।’ इस प्रकार सभी भक्त प्रभु के भावी वियोगजन्य दु:ख का स्मरण करते हुए भाँति-भाँति से प्रलाप करने लगे। |