श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी76. भक्तवृन्द और गौरहरि
कुछ क्षीण स्वर में श्रीवास पण्डित ने कहा- ‘प्रभो! जो बड़भागी भक्त आपके लौटने तक जीवित रह सकेंगे वे ही आपकी कमाई का उपभोग कर सकेंगे। हम लोग तो आपके बिना जीवित रह ही नहीं सकते।’ प्रभु ने कहा- ‘पण्डित जी! आप ही हम सबके पूज्य हैं। मुझे कहने में लज्जा लगती है, किंतु प्रसंग वश कहना ही पड़ता है कि आपके ही द्वारा हम सभी भक्त इतने दिनों तक प्रेम के सहित संकीर्तन करते हुए भक्ति-रसामृत का आस्वादन करते रहे। अब आप ऐसा आशीर्वाद दीजिये कि हम अपने व्रत को पूर्णरीत्या पालन कर सकें।’ इतने में ही मुरारी गुप्त भी वहाँ आ गये। वे तो इस बात को सुनते ही एकदम बेहोश होकर गिर पड़े। बहुत देर के पश्चात चैतन्य लाभ होने पर कहने लगे- ‘प्रभो! आप सर्वसमर्थ हैं, किसी की मानेंगे थोड़े ही। जिसमें आप जीवों का कल्याण समझेंगे, वह चाहे आपके प्रियजनों के लिये कितनी भी अप्रिय बात क्यों न हो, उसे भी कर डालेंगे, किंतु हे हम पतितों के एकमात्र आधार! हमें अपने हृदय से न भुलाइयेगा। आपके श्रीचरणों की स्मृति बनी रहे, ऐसा आशीर्वाद और देते जाइयेगा। आपके चरणों का स्मरण बना रहे तो यह नीरस जीवन भी सार्थक है। आपके चरणों की विस्मृति में अंधकार है और अंधकार ही अज्ञानता का हेतु है।’ |