श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
72. क़ाज़ी की शरणागति
जब प्रभु को इस बात का पता चला कि कुछ उपद्रवी लोग जनता को भड़काकर उसमें उत्तेजना पैदा कर रहे हैं और क़ाज़ी को क्षति पहुँचाने का उद्योग कर रहे थे, तो उन्होंने उसी समय संकीर्तन बंद कर देने की आज्ञा दे दी। प्रभु की आज्ञा पाते ही सभी भक्तों ने अपने-अपने वाद्य नीचे उतार कर रख दिये। नृत्य करने वाले रुक गये। पद गाने वालों ने पद बंद कर दिये। क्षणभर में ही वहाँ सन्नाटा-सा छा गया। प्रभु ने दिशाओं को गुंजाते हुए मेघ-गम्भीर स्वर में कहा- ‘खबरदार! किसी ने क़ाज़ी को तनिक भी क्षति पहुँचाने का उद्योग किया तो उससे अधिक अप्रिय मेरा और कोई न होगा। सभी एकदम शान्त हो जाओ।’ प्रभु का इतना कहना था कि सभी उपद्रवी अपने-अपने हाथों से शाखा तथा ईंट-पत्थर फेंककर चुपचाप प्रभु के समीप आ बैठे। सबको शान्त भाव से बैठे देखकर प्रभु ने क़ाज़ी के नौकरों से कहा- ‘काजी से हमारा नाम लेना और कहना कि आपको उन्होंने बुलाया है, आपके साथ कोई भी अभद्र व्यवहार नहीं कर सकता, आप थोड़ी देर को बाहर चलें।’
प्रभु की बात सुनकर क़ाज़ी के सेवक घर में घिपे हुए क़ाज़ी के पास गये और प्रभु ने जो-जो बातें कही थीं, वे सभी जाकर क़ाज़ी से कह दीं। प्रभु के ऐसे आश्वासन को सुनकर और इतनी अपार भीड़ को चुपचाप शान्त देखकर क़ाज़ी बाहर निकला। प्रभु पे भक्तों के सहित क़ाज़ी का अभ्यर्थना की और प्रेमपुर्वक उसे अपने पास बिठाया। प्रभु ने कुछ हंसते हुए प्रेम के स्वर में कहा- ‘क्यों जी, यह कहाँ की रीति है कि हम तो आपके द्वार पर अतिथि होकर आये हैं और आप हमें देखकर घर में जा छिपे!’
काजी ने कुछ लज्जित होकर विनीत भाव से प्रेम के स्वर में कहा- ‘मेरा सौभाग्य, जो आप मेरे घर पर पधारे! मैंने समझा था, आप क्रोधित होकर मेरे यहाँ आ रहे हैं, इसीलिये क्रोधित अवस्था में आपके सम्मुख होना ठीक नहीं समझा।’
प्रभु ने हंसते हुए कहा- ‘क्रोध करने की क्या बात थी? आप तो यहाँ के शासक हैं, मैं आपके ऊपर क्रोध क्यों करने लगा?’
यह बात हम पहले ही बता चुके हैं कि शचीदेवी के पूज्य पिता तथा महाप्रभु के नाना नीलाम्बर चक्रवर्ती का घर इसी बेलपुखरिया मुहल्ले में क़ाज़ी के पास ही था। क़ाज़ी चक्रवर्ती महाशय से बड़ा स्नेह रखते थे। इसीलिये क़ाज़ी ने कहा- ‘देखों निमाई! गांव-नाते से चक्रवर्ती मेरे चाचा लगते हैं, इसलिये तूम मेरे भानजे लगे। मैं तुम्हारा मामा हूँ, मामा के ऊपर भानजा यदि अकारण क्रोध भी करे तो मामा को सहना पड़ता है। मैं तुम्हारे क्रोध को सह लूंगा। तुम जितना चाहो, मेरे ऊपर क्रोध कर लो।‘
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