श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी72. क़ाज़ी की शरणागति
इस प्रकार संकीर्तन-समाज अपने नृत्य-गान तथा जय-जयकारों से नगर-वासियों के हृदय में एक प्रकार के नवजीवन का संचार करता हुआ गंगा जी के उस घाट पर पहुँच, जहाँ प्रभु नित्यप्रति स्नान करते थे। वहाँ से प्रभु भक्त मण्डली के सहित मधाई-घाट पर गये। मधाई-घाट से सीधे ही बेलपुखरा जहाँ क़ाज़ी रहता था उसकी ओर चले। अब सभी को स्मरण हो उठा कि प्रभु को आज क़ाज़ी का भी उद्धार करना है। सभी उसके अत्याचारों को स्मरण करने लगे। कुछ लोग तो यहाँ तक आवेश में आ गये कि खूब जोरों के साथ चिल्लाने लगे- ‘इस क़ाज़ी को पकड़ लो’, ‘जान से मार डालो’, ‘इसने हिंद-धर्म पर बड़े-बड़े़ अत्याचार किये हैं।’ प्रभु को इन बातों का कुछ भी पता नहीं था। उन्हें किसी मनुष्य से या किसी सम्प्रदाय-विशेष से रत्तीभर भी द्वेष नहीं था। वे तो अन्याय के द्वेषी थे, सो भी अन्यायी के साथ वे लड़ना नहीं चाहते थे! वे तो प्रेमास्त्र द्वारा ही उसका पराभव करना चाहते थे। वे संहार के पक्षपाती न होकर उद्धार के पक्ष में थे। इसलिये मार-काट का नाम लेने वाले पुरुष उनके अभिप्राय को न समझने वाले अभक्त पुरुष ही थे। उन उत्तेजना प्रिय अज्ञानी मनुष्यों ने तो यहाँ तक किया कि वृक्षों की शाखाएं तोड़-तोड़कर वे क़ाज़ी के घर में घुस गये और उसकी फुलवारी तथा बाग के फल-फूलों को नष्ट-भ्रष्ट करने लगे। क़ाज़ी के आदमियों ने पहले से ही क़ाज़ी को डरा दिया था। उससे कह दिया था- ‘निमाई पण्डित हजारों मनुष्यों को साथ लिये हुए तुम्हें पकड़ने के लिये आ रहा है। वे लोग तुम्हें जान से मार डालेंगे।’ कमज़ोर हृदय वाला क़ाज़ी अपार लोगों के कोलाहल से डर गया। उसकी फौज ने भी डरकर जवाब दे दिया। बेचारा चारों ओर से अपने का असहाय समझकर घर के भीतर जा छिपा। |