श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी65. जगाई और मधाई की प्रपन्नता
भक्तगण जगाई-मधाई दोनों भाइयों को साथ लेकर प्रभु के यहाँ आये। सभी भक्त यथास्थान बैठ गये। एक उच्चासर पर प्रभु विराजमान हुए। उनकें दायें-बायें गदाधर और नित्यानंद जी बैठे। सामने वृद्धआचार्य अद्वैत विराजमान थे। इनके अतिरिक्त पुण्डरीक, विद्यानिधि, हरिदास, गरुड़, रमाई पण्डित, श्रीनिवास, गंगाधर, वक्रेश्वर, चन्द्रशेखर आदि अनेकों भक्त प्रभु के चारों ओर बैठे हुए थे। बीच में ये दोनों भाई-जगाई और मधाई नीचा सिर किये आँखों में से अश्रु बहा रहे थे। इनके अंग-प्रत्यंग से विषण्णता और पश्चात्ताप की जवाला-सी निकलती हुई दिखायी दे रही थी। दोनों का शरीर पुलकित हो रहा था। दोनों ही नित्यानंद और प्रभु की भारी कृपा के बोझ से दबे-से जा रहे थे। उन्हें अपने शरीर का होश नहीं था। प्रभु ने उन्हें इस प्रकार विषादयुक्त देखकर उनसे कहा- ‘भाइयो! तुम पर श्रीपाद नित्यानंद जी ने कृपा कर दी, अब तुम लोग शोक-मोह छोड़ दो, अब तुम निष्पाप बन गये। भगवान ने तुम्हारे ऊपर बड़ी कृपा की है।' प्रभु की बात सुनकर गद्गदकण्ठ से रोते हुए दोनों भाई बोले- ‘प्रभो! हम पापियों का उद्धार करके आज आपने अपने ‘पतिपावन’ नामको यथार्थ में ही सार्थक कर दिया। आपका पतितपावन नाम तो आज ही सार्थक हुआ। अजामिल को तारने में आपकी कोई प्रशंसा नहीं थी; क्योंकि उसने सब पापों को क्षय करने वाला चार अक्षरों का ‘नारायण’ नाम तो लिया था। गणिका सूआ पढ़ाते-पढ़ाते ही राम-नाम का उच्चारण करती थी, कैसे भी सही, भगवन्नाम का उच्चारण तो उसकी जिह्वा से होता था। वाल्मीकि जी ने सहस्रों वर्षों तक उलटा ही सही, नाम-जप तो किया था। खेत में उलटा-सीधा कैसे भी बीज पड़ना चाहिये, वह जम अवश्य आवेगा। दन्तवक्र, शिशुपाल, रावण, कुम्भकर्ण, शकटासुर, शम्बरासुर, अघासुर, बकासुर, कंस आदि सभी असुर और राक्षसों ने द्वेषबुद्धि से ही सही, आपके रूप का चिंतन तो किया था। वे उठते-बैठते, सोते-जागते सदा आपका ध्यान तो करते रहते थे। इन सबकी मुक्ति तो होनी ही चाहिये, ये लोग तो भगवत-संबंधी होने के कारण मुक्ति के अधिकारी ही थे, किंतु हे दीनानाथ! हे अशरण-शरण! हे पतितों के एकमात्र आधार! हे कृपा के सागर! हे पापियों के पतवार! हे अनाथरक्षक! हम पापियों ने तो कभी भूल से भी आपका नाम ग्रहण नहीं किया था। हम तो सदा मदोन्मत्त हुए पापकर्मों में ही प्रवृत्त रहते थे। हमें तो आपके संबंध में कुछ ज्ञान भी नहीं था। हमारे ऊपर कृपा करके आपने संसार को प्रत्यक्ष ही यह दिखला दिया कि चाहे कोई भजन करे या न करे, कोई कितना ही बड़ा पापी क्यों न हो, प्रभु उसके ऊपर भी एक-न-एक दिन अवश्य ही कृपा करेंगे। हे प्रभों! हमें अपने पापों का फल भोगने दीजिये। हमें अरबों-खरबों और असंख्यों वर्षों तक नरकों की भयंकर यातनाओं को भोगने दीजिये। प्रभों! हम आपकी इस अहैतु की कृपा को सहन न कर सकेंगे। नाथ! हमारा हृदय विदीर्ण हुआ जा रहा है। हम प्रभु के इतने बड़े कृपापात्र बनने के योग्य कोटि जन्मों में भी न बन सकेंगे, जितनी कृपा प्रभु हमारे ऊपर प्रदर्शित कर रहे हैं।' |