श्री श्रीचैतन्य-चरितावली -प्रभुदत्त ब्रह्मचारी65. जगाई और मधाई की प्रपन्नता
क्योंकि जब तक मनुष्य को अपने बल का आश्रय है, जब तक वह अपने को ही बली और समर्थ माने बैठा है, तब तक भगवान सहायता क्यों करने लगे? वे तो निर्बलों के सहायक हैं- निष्किंचनों के रक्षक हैं- इसी आगे सूर कहते हैं- जगाई-मधाई के पास अन्याय से उपर्जित यथेष्ट धन था, शरीर उन दोनों का पुष्ट था, शासक की ओर से उन्हें अधिकार मिला हुआ था। धन, जन, सेना तथा अधिकार सभी के मद में वे अपने को ही कर्ता समझे बैठे थे, इसलिये प्रभु भी इनसे दूर ही रहे आते थे। जिस क्षण ये अपने सभी प्रकार के अधिकार और बलों को भुलाकर निर्बल और निष्किंचन बन गये उसी समय प्रभु ने इन्हें अपनी शरण में ले लिया। उस क्षणभर के ही उपशम से वे उम्रभर के पुराने पापी सभी वैष्णवों के कृपाभाजन बन गये। प्रपन्नता और शरणागति में ऐसा ही जादू है। जिस क्षण ‘तेरा हूँ’ कहकर सच्चे दिल से उनसे प्रार्थना करो उसी क्षण वे अपना लेते हैं, वे तो भक्तों के लिये भूखे-से बैठे रहते हैं। लोगों के मुख की ओर ताकते रहते हैं कि कोई अब कहे कि ‘मैं तुम्हारा हूँ’, यहाँ तक कि अजामिलने झूठे ही पुत्र के बहाने ‘नारायण’ शब्द कह दिया। बस, इतने से ही उसकी रक्षा की और उसके जन्मभर के पाप क्षमा कर दिये। |